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तेल अवीव, 26 नवंबर . इजरायल इन दिनों हेल्थ सेक्टर के दो मोर्चों पर एक साथ लड़ रहा है. एक तरफ खसरे के बढ़ते मामलों का खतरा है, और दूसरी तरफ लोगों में वैक्सीन के प्रति बढ़ती झिझक है. जिस देश ने वर्षों तक अपने बच्चों को नियमित टीकाकरण में लगभग बेहतरीन रिकॉर्ड कायम रखा था, वहीं अब कोविड-19 महामारी के बाद पैदा हुई वैक्सीनेशन के प्रति अरुचि ने उस भरोसे को कमजोर कर दिया है.
बार-इलान यूनिवर्सिटी के अध्ययन ने बताया कि महामारी के बाद इजरायल में बच्चों की रूटीन वैक्सीन्स- खासकर एमएमआर यानी मीजल्स (खसरा), मम्प्स और रुबेला और डीपीटी की स्वीकृति में स्पष्ट गिरावट आई है. जिन माता-पिता ने पहले बिना सवाल पूछे अपने बच्चों को टीके दिलाए, वे अब अधिक सतर्क, संशयग्रस्त और कुछ मामलों में विरोधी दिखने लगे हैं.
शोध में पाया गया कि जिन 6.6 फीसदी अभिभावकों ने महामारी से पहले अपने बड़े बच्चे को वैक्सीन लगवाई थी, उन्होंने छोटे बच्चे को वैक्सीन नहीं लगवाने का फैसला किया; यह मौजूदा बीमारी को ‘शुरू करने के लिए काफी’ है.
ये नतीजे तब सामने आए हैं जब मई से अब तक इजरायल में खसरे से 11 बच्चों की मौत हो चुकी है. इनमें से ज्यादातर को टीका नहीं लगा था. विभाग के मुताबिक, अक्टूबर के आखिर तक संक्रमण के 1,644 मामले सामने आए और 577 पीड़ित अस्पताल में भर्ती हुए थे.
अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पाया कि इजरायल में बच्चों के एमएमआर टीकाकरण में महामारी से पहले की तुलना में लगभग 3 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह बदलाव मामूली लगता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि खसरे जैसी बीमारी के लिए यह गिरावट बहुत मायने रखती है, वो भी तब जब इजरायल इस बीमारी के पूरी तरह से खात्मे की बात कह चुका था.
खसरा दुनिया की सबसे संक्रामक बीमारियों में से एक है—अगर एक व्यक्ति संक्रमित हो जाए, तो आस-पास के लगभग 90 फीसदी गैर-टीकाकृत भी इसकी चपेट में आ सकते हैं. इसलिए किसी एक छोटे समूह में भी टीकाकरण दर में गिरावट पूरे देश के लिए खतरा बढ़ा सकती है. यही वजह है कि इजरायल के कुछ हिस्सों में खसरा तेजी से फैल रहा है, खासकर उन इलाकों में जहां टीकाकरण दर पहले से कम है.
कोविड महामारी के दौरान जिस तरह स्वास्थ्य निर्देशों में बार-बार बदलाव हुए, social media पर गलत सूचनाएं फैलीं और कई लोगों ने वैक्सीन को लेकर अपनी राय बदली—इसी ने रूटीन टीकाकरण का भरोसा भी प्रभावित किया. इजरायल में कई माता-पिता ने कहा कि कोविड वैक्सीन्स के समय उन्हें स्पष्ट जानकारी नहीं मिली, जिससे उन्हें अब सामान्य टीकाकरण के बारे में भी सोचने पर मजबूर होना पड़ा. इस बदले हुए मनोवैज्ञानिक माहौल ने ‘टीके के प्रति घटती रुचि’ को जन्म दिया. एक ऐसी स्थिति जिसमें लोग टीकों को खतरनाक नहीं मानते, लेकिन अनावश्यक या संदिग्ध मानने लगते हैं. यह सोच खसरे जैसे रोगों के लिए सीधा खतरा बन गई है.
इजरायल का स्वास्थ्य विभाग बार-बार यह कह चुका है कि एमएमआर की दो खुराकें खसरे को लगभग पूरी तरह रोक सकती हैं. फिर भी, जिन समुदायों में कोविड के दौरान वैक्सीन विरोधी भावनाएं मजबूत हुईं, वे अब रूटीन टीकाकरण से भी दूर हो रहे हैं. यह गिरावट केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि अस्पतालों और क्लिनिकों में दिख रही है—जहां डॉक्टरों के पास आने वाले माता-पिता पहले की तुलना में अधिक प्रश्न पूछते हैं, अधिक चिंतित रहते हैं और कई बार खसरे का खतरा समझने के बावजूद टीके से बचना चाहते हैं.
द टाइम्स ऑफ इजरायल ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों के हवाले से कहा कि कोविड के दौरान खोया भरोसा दोबारा बनाना आसान नहीं होगा. इजरायल में खासकर शहरी-धार्मिक समुदाय और कुछ प्रवासी समूहों में टीकाकरण दर पहले भी राष्ट्रीय औसत से कम थी; अब कोविड के बाद पैदा हुई संशयग्रस्त सोच ने इन क्षेत्रों को और संवेदनशील बना दिया है.
खसरे का यह उभार सिर्फ एक बीमारी से जुड़ा नहीं है, बल्कि भरोसे के संकट की एक चेतावनी है. इजरायल जैसे देश, जहां स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत मानी जाती है, वहां भी कोविड के बाद गलतफहमियों और डर ने वैक्सीन पर वर्षों से बने भरोसे को हिलाकर रख दिया है.
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केआर/