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New Delhi, 25 नवंबर . पार्किंसंस दिमाग की रक्त वाहिकाओं पर बड़े बदलाव धीरे-धीरे लेकर आता है और इसका खुलासा ऑस्ट्रेलिया में हुए एक शोध ने किया है.
सिन्हुआ न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, पार्किंसंस की पहचान अल्फा-सिनुक्लिन प्रोटीन जमा होने से होती है, लेकिन रिसर्च से पता चला है कि दिमाग के ब्लड वेसल में होने वाले खास बदलाव बीमारी को बढ़ाने का कारण बनते हैं.
न्यूरोसाइंस रिसर्च ऑस्ट्रेलिया (एनईयूआरए) में पोस्टडॉक्टरल स्टूडेंट डेर्या डिक ने कहा, “पहले, पार्किंसंस के रिसर्चर्स ने प्रोटीन जमा होने और न्यूरोनल लॉस पर फोकस किया है, लेकिन हमने हमारे सेरेब्रोवास्कुलचर (दिमाग की ब्लड वेसल्स) पर इसके असर को परखा है.”
डिक ने आगे कहा, “हमने अपनी रिसर्च में पाया कि दिमाग की रक्त वाहिकाओं में बदलाव रीजन-स्पेसिफिक (यहां तात्पर्य दिमाग के हिस्से से है) होते हैं. पता चला कि इस दौरान स्ट्रिंग वेसल में वृद्धि होती है; ये वो वाहिकाएं होती हैं जो नॉन-फंक्शनल (इनमें एंडोथेलियल कोशिकाएं नहीं होती) होती हैं.”
एनईयूआरए शोधार्थियों ने यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ वेल्स और यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के साथ मिलकर इस पर स्टडी की. इन्होंने ये भी पाया कि कैसे ब्रेन में रक्त संचार होता है और कैसे ब्लड-ब्रेन बैरियर ऑपरेट करता है.
जर्नल ब्रेन में छपी इस स्टडी ने संभावनाओं के नए द्वार खोले हैं. विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इससे भविष्य में बीमारी के इलाज में मदद मिलेगी.
शोधकर्ताओं को लगता है कि रीजन-स्पेसिफिक बदलावों को टारगेट करने से पार्किंसंस पीड़ितों की मदद हो सकेगी. इसके अलावा अन्य न्यूरोडिजेनेरेटिव डिसऑर्डर्स पर ये कितनी प्रभावी रहेगी इस पर भी नजर है.
डिक ने कहा, “हम अब जांच कर रहे हैं कि क्या अल्जाइमर रोग और लेवी बॉडीज टिशू (न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचाते हैं) वाले डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के पोस्ट-मॉर्टम ब्रेन टिशू (मृत्यु के बाद दान किए गए मस्तिष्क के टिशू) में भी इसी तरह के सेरेब्रोवैस्कुलर बदलाव मौजूद हैं.”
शोधकर्ताओं को भरोसा है कि ये अध्ययन भविष्य में इलाज के नए विकल्प सुझा सकता है.
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केआर/