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अयोध्या, 25 नवंबर . अयोध्या में होने वाले भव्य ध्वजारोहण कार्यक्रम को लेकर 1992 के आंदोलन में अग्रिम पंक्ति में रहे कारसेवक संतोष दूबे भावुक हो उठे. उन्होंने इसे “दशकों पुराने संकल्प की सिद्धि” बताते हुए कहा कि यह पल उन सभी कारसेवकों के लिए अत्यंत गौरवपूर्ण है जिन्होंने आंदोलन में अपना सर्वस्व झोंक दिया था. दूबे का कहना है कि जिन संघर्षों, बलिदानों और पीड़ा को उन्होंने और उनके साथियों ने झेला, वह आज मंदिर की पूर्णता देखकर सार्थक प्रतीत हो रहा है.
1992 की हिंसक झड़पों को याद करते हुए दूबे ने बताया कि कारसेवकों पर गोलियां चली थीं, कई साथी उनके सामने शहीद हुए, और वे स्वयं घायल साथियों को कंधे पर उठाकर ले गए. उन्होंने कहा कि उनके पिता ने आदेश दिया था, “ढांचा ढहाए बिना वापस मत आना,” और यही संकल्प उनके भीतर ऊर्जा का स्रोत बना. दूबे ने बताया कि कारसेवकों को हथौड़े, गैती, फावड़े और तलवारें देकर 17 टीमों में बांटा गया था और सभी साथियों ने मृत्यु तक संघर्ष करने की प्रतिज्ञा ली थी.
दूबे ने यह भी स्वीकार किया कि ढांचा गिराने के बाद उन्होंने कैमरे और अदालत दोनों में साफ कहा, “मैंने ढांचा तोड़ा है, यह धर्मकार्य था.” उनके अनुसार उस समय का दमन, लाठीचार्ज, गोलियां और गिरफ्तारी आज मंदिर की दिव्यता और ध्वजारोहण की तैयारी के सामने फीके पड़ जाते हैं. उन्होंने कहा कि यह पल उनके जीवन की सार्थकता, तप और तपस्या का प्रतीक है.
दूबे ने Prime Minister Narendra Modi के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि एक समय अयोध्या में गोली चलाने वाली Government थी, और आज वह समय है जब श्रद्धालुओं पर पुष्पवर्षा हो रही है. उन्होंने बताया कि 1 दिसंबर को सप्तकोशी परिक्रमा कर पीएम मोदी को सामूहिक धन्यवाद ज्ञापित किया जाएगा. दूबे के अनुसार, आज जब रामलला के मंदिर पर भव्य ध्वजा फहरने जा रहा है, तब यह आंदोलन से जुड़े हर कारसेवक के लिए आनंद, संतोष और संकल्प-सिद्धि का क्षण है.
बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय कारसेवक रहे रवि शंकर पांडेय का कहना है कि हमारा दशकों पुराना संकल्प आज साकार हो रहा है. कल ध्वजारोहण का ऐतिहासिक कार्यक्रम होने जा रहा है और Prime Minister भी शामिल रहेंगे. हमारे लिए, खासकर हम जीवित कारसेवकों के लिए, यह क्षण अवर्णनीय है. जिस सपने के लिए साथियों ने अपनी जान तक दे दी, किसी का हाथ टूटा, किसी का पैर टूटा, कई साथी शहीद हो गए, आज वह संकल्प पूरा होता दिखाई दे रहा है.
उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर कभी गोलियां चली थीं, जहां हम सबने संघर्ष झेला था, आज वहीं भव्य ध्वजारोहण हो रहा है. हमारे सामने कोठारी बंधुओं को गोली मारी गई थी, संतोष दूबे को गोली लगी थी, और उन्हें कंधे पर उठाकर बचाने वाले भी हम ही थे. तब और आज की स्थिति में जमीन-आसमान का फर्क है.
उन्होंने कहा कि आज यहां देश से ही नहीं, विदेशों से भी लोग आ रहे हैं. पहले जहां एक भी विदेशी नहीं दिखता था, आज 30% विदेशी श्रद्धालु दिख रहे हैं. यह बदलाव बताता है कि हमारा संघर्ष सफल हुआ. मंदिर पूर्णता की ओर है और हमारा दशकों पुराना संकल्प आज साकार हो रहा है.
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एएमटी/डीएससी