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New Delhi, 21 नवंबर . सनातन धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो पूरे विधि विधान से उसका अंतिम संस्कार किया जाता है. इसे सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरा धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है. इसके बाद अस्थियों को पवित्र नदी में बहाना चाहिए. खासकर गंगा नदी को इस काम के लिए सबसे पवित्र माना गया है.
अब सवाल ये है कि आखिर अस्थि विसर्जन गंगा में ही क्यों किया जाता है? ऐसा क्या कारण है कि हजारों सालों से लोग अपनी परंपरा निभाते हुए गंगा जी में अस्थियां प्रवाहित करते आ रहे हैं?
गरुड़ पुराण के अनुसार, मानव शरीर पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) से मिलकर बना है और मृत्यु के बाद उन्हीं पंच तत्वों में विलीन हो जाता है. अंतिम संस्कार यानी दाह संस्कार के दौरान आग (अग्नि तत्व) शरीर को लौटा दी जाती है. इसके बाद बची हुई अस्थियां तीन दिन के अंदर-अंदर चुन ली जाती हैं. फिर दस दिनों के भीतर इन्हें किसी पवित्र नदी विशेषकर गंगा में विसर्जित किया जाता है.
मान्यता है कि जब अस्थियों का विसर्जन गंगा में किया जाता है, तो आत्मा को शांति मिलती है और वह स्वर्ग की ओर बढ़ जाती है. पुराणों में यह भी कहा गया है कि गंगा में अस्थि विसर्जन करने से पापों का नाश होता है.
ऐसा माना जाता है कि राजा भागीरथ अपनी तपस्या के बल पर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लेकर आए थे ताकि उनके पूर्वजों को मोक्ष मिल सके. इसी वजह से गंगा नदी को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है.
ऐसा भी कहा जाता है कि गंगा में अस्थि विसर्जन करने से मृतक को सिर्फ स्वर्ग ही नहीं, बल्कि ब्रह्मलोक तक की प्राप्ति होती है. आत्मा को वह स्थान मिलता है, जहां पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है और वह परम शांति की अवस्था को प्राप्त करती है.
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पीआईएम/वीसी