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कोलकाता, 21 नवंबर . पश्चिम बंगाल के Governor सीवी आनंद बोस ने Supreme court के गवर्नरों की विधायी शक्तियों और उनकी सीमाओं से जुड़े फैसले पर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि Supreme court ने बहुत बैलेंस्ड नजरिया अपनाया है.
Governor सीवी आनंद बोस ने कहा कि Supreme court ने यह साफ कर दिया है कि गवर्नर या India के President के लिए कोई टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती, लेकिन Supreme court ने बहुत बैलेंस्ड नजरिया अपनाया है कि इसका मतलब यह नहीं है कि गवर्नर किसी फाइल पर अनिश्चित काल तक बैठे रह सकते हैं. इसकी देरी की कोई वजह होनी चाहिए.”
उन्होंने आगे कहा, “एक और बात जो बंगाल के Governor के लिए बहुत खुशी की बात है, वह यह है कि तीन साल पहले हमने Government और विधानसभा के साथ बातचीत का प्रोसेस शुरू किया था. इसे India के Supreme court ने मंजूरी दी है.”
Governor ने यह भी स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल में कोई बिल पेंडिंग नहीं है. कुछ बिल क्लैरिफिकेशन नोट्स के साथ Government को वापस भेज दिए गए हैं और हम नतीजों व जवाब का इंतजार कर रहे हैं. जवाब मिलने के बाद, बिना किसी देरी के कार्रवाई की जाएगी.
दरअसल, Governor की शक्ति और अधिकार से जुड़ा मामला तमिलनाडु से उठा था. आरोप थे कि तमिलनाडु के Governor ने राज्य Government के बिलों को अटका कर रखा था. Thursday को Supreme court ने अपने 8 अप्रैल के फैसले को पलटा और स्पष्ट किया कि Governor या India के President के लिए कोई टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती है.
India के चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और अतुल एस चंदुरकर की संविधान बेंच ने मामले में सर्वसम्मति से अपना फैसला दिया.
Supreme court ने कहा, “पिछले फैसले में तय टाइमलाइन और अगर President या Governor इन टाइमलाइन का पालन नहीं करते हैं तो बिलों को ‘डीम्ड असेंट’ देना, कोर्ट की ओर से उनकी शक्तियों का हड़पना है और इसकी इजाजत नहीं है.”
कोर्ट ने कहा, “टाइमलाइन लगाना संविधान में रखी गई फ्लेक्सिबिलिटी के बिल्कुल खिलाफ है. अनुच्छेद 200 और 201 के संदर्भ में ‘डीम्ड असेंट’ का कॉन्सेप्ट यह मानता है कि एक कॉन्स्टिट्यूशनल अथॉरिटी, यानी कोर्ट, दूसरी कॉन्स्टिट्यूशनल फंक्शनरी अथॉरिटी (Governor या President) की जगह ले सकती है. Governor या President की शक्तियों का इस तरह हड़पना संविधान की भावना और शक्तियों को अलग करने के सिद्धांत के खिलाफ है. पेंडिंग बिलों पर डीम्ड असेंट का कॉन्सेप्ट असल में दूसरी कॉन्स्टिट्यूशनल अथॉरिटी की भूमिका को खत्म करने जैसा है.”
Supreme court ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी Governor के पास यह अधिकार नहीं कि वे किसी विधेयक को रोककर रखें. कोर्ट ने कहा कि Governor के पास बिल पर निर्णय लेने के तीन ही संवैधानिक विकल्प हैं, जिनमें विधेयक को मंजूरी देना, President के पास भेजना या विधानसभा को वापस भेजना. कोर्ट ने कहा कि Governor किसी विधेयक को बिना निर्णय के लंबित नहीं रख सकते.
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डीसीएच/