झारखंड: नगर निगम चुनाव में मेयर पद पर आरक्षण नीति को चुनौती, हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

रांची, 19 नवंबर . Jharkhand हाई कोर्ट ने राज्य में नगर निगमों के चुनाव में मेयर पद को दो अलग-अलग आरक्षण श्रेणियों में बांटने के राज्य Government के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर Wednesday को सुनवाई की.

चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने इस मामले में राज्य Government और राज्य निर्वाचन आयोग से विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है. याचिका पर अगली सुनवाई 17 दिसंबर को निर्धारित की गई है.

यह याचिका शांतनु कुमार चंद्रा की ओर से दायर की गई है. प्रार्थी की तरफ से अदालत को बताया गया कि राज्य Government ने कार्यपालिका आदेश के माध्यम से मेयर पद को दो वर्गों, ‘क’ और ‘ख’, में बांट दिया है, जो संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है.

याचिकाकर्ता का तर्क है कि Government इस तरह का आदेश से नहीं दे सकती. यह निर्णय असंवैधानिक और अधिकारों का उल्लंघन करने वाला है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए.

अदालत को यह भी बताया गया कि नगर निकाय चुनाव 2011 की जनगणना के आधार पर कराए जा रहे हैं और इसी आधार पर आरक्षण सूची तैयार की गई है. Government ने राज्य के नौ नगर निगमों को दो वर्गों में बांटा है. रांची और धनबाद नगर निगम को वर्ग ‘क’ में रखा गया है, जबकि शेष सात नगर निगम वर्ग ‘ख’ में शामिल किए गए हैं.

प्रार्थी ने धनबाद और गिरिडीह में आरक्षण नीति पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि 2011 की जनगणना के अनुसार धनबाद में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग दो लाख है. ऐसे में वहां मेयर पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होना चाहिए था, लेकिन Government ने इसे अनारक्षित श्रेणी में डाल दिया.

इसके विपरीत, गिरिडीह में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 30 हजार है, फिर भी वहां मेयर पद को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया है. याचिकाकर्ता ने इसे मनमाना और तर्कहीन बताते हुए कहा कि आरक्षण तय करने में जनसंख्या के वास्तविक आंकड़ों की अनदेखी नहीं की जा सकती. अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए Government और आयोग दोनों से विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है.

एसएनसी/एमएस