नूर्नबर्ग ट्रायल की शुरुआत: जब इंसानियत ने पहली बार युद्ध अपराधियों को अदालत में खड़ा किया

New Delhi, 19 नवंबर . द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो चुका था. यूरोप जले हुए शहरों, टूटे पुलों और उजड़ी हुई बस्तियों के बीच अपनी सांसें समेट रहा था. लाखों परिवार अपने लापता लोगों की तलाश कर रहे थे, और नाजी शासन द्वारा किए गए अत्याचारों की दर्दनाक सच्चाई धीरे-धीरे सामने आ रही थी. इसी माहौल में जर्मनी के शहर नूर्नबर्ग में एक ऐसा मुकदमा शुरू हुआ जिसने अंतरराष्ट्रीय कानून को हमेशा के लिए बदल दिया और ये था नूर्नबर्ग ट्रायल. ये तारीख थी 20 नवंबर 1945 की, जो दुनिया के इतिहास में एक अनोखी सुबह लेकर आई.

दुनिया की नजर अखबारों, रेडियो रिपोर्टों और फोटोग्राफरों के कैमरों पर टिकी हुई थी. अदालत के बाहर भारी-भरकम कैमरे उठाए फोटोग्राफर लाइन में खड़े थे, ताकि हर ऐतिहासिक क्षण को तस्वीरों में कैद किया जा सके. रेडियो रिपोर्टर अपनी नोटबुक पर तेजी से नोट लिखते जा रहे थे, ताकि अगली ही सुबह दुनिया भर के अखबारों में यह खबर सुर्खियों में छपे. माहौल बिल्कुल वैसा था जैसे कोई बड़ा फैसला दुनिया से छिपाया नहीं जा सकता; हर किसी को पता था कि यह ऐतिहासिक मोड़ है.

अदालत के अंदर दृश्य और भी असामान्य था. नाजी शासन के 24 शीर्ष नेता कटघरे में खड़े थे—वही लोग जिनके आदेशों पर जर्मनी और यूरोप वर्षों तक कांपता रहा. हर्मन गोरिंग, रिबेंट्रोप, और हेस जैसे नाम, जिनके बारे में लोग केवल सत्ता और ताकत की कहानियां सुनते थे, अब एक साधारण लकड़ी के कटघरे में बैठे हुए थे. कई अभियुक्तों के चेहरे पर अजीब-सा सन्नाटा था, जैसे उन्हें अब भी यकीन न हो कि उन्हें दुनिया के सामने जवाब देना पड़ेगा.

इस मुकदमे की सबसे खास बात यह थी कि इसे किसी एक देश ने नहीं चलाया. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ—चारों महाशक्तियां मिलकर इस अदालत का संचालन कर रही थीं. यह सिर्फ जर्मनी का या एक युद्ध का मामला नहीं था. यह पूरी मानवता के नाम पर चलाया जा रहा पहला मुकदमा था, जिसमें संदेश साफ था: चाहे पद कितना भी बड़ा हो, युद्ध और नरसंहार के अपराध छिपाए नहीं जा सकते.

अदालत में जिन अपराधों पर सुनवाई हो रही थी, उनमें युद्ध शुरू करने की साजिश, युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और लाखों यहूदियों के सामूहिक नरसंहार यानी होलोकॉस्ट शामिल थे. मुकदमे के दौरान पहली बार दुनिया ने आधिकारिक रूप से वे दस्तावेज, तस्वीरें और बयान देखे जो कंसंट्रेशन कैंपों की भयावहता को उजागर करते थे. अखबारों ने अगले दिन इन्हें “मानव इतिहास के सबसे काले सबूत” कहा.

करीब एक साल तक यह मुकदमा चला. गवाहियां सुनी गईं, सबूत पेश किए गए, और वह सब सामने आया जिसे कई लोग असंभव समझते थे. आखिरकार अदालत ने कई अभियुक्तों को फांसी और लंबी कैद की सजा सुनाई, जबकि कुछ लोगों को सबूतों की कमी के आधार पर बरी भी किया गया.

नूर्नबर्ग ट्रायल सिर्फ एक मुकदमा नहीं था; यह एक घोषणा थी कि मानवता के खिलाफ अपराध करने वालों के लिए दुनिया में अब कोई सुरक्षित जगह नहीं रहेगी. यह वही घटना थी जिसने आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) जैसी संस्थाओं की नींव डाली.

केआर/