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New Delhi, 17 नवंबर . मौसम बदलते ही त्वचा अपनी नमी खोने लगती है. दुनिया के कई हिस्सों में नवंबर का महीना आधिकारिक तौर पर सर्दियों की शुरुआत माना जाता है, लेकिन जिन्हें अपनी स्किन से प्यार है उनके लिए ये ‘स्किन बैरियर गिरने का महीना’ भी है. यही कारण है कि जिन लोगों की त्वचा सामान्य महीनों में ठीक रहती है, वही इस ट्रांजिशनल पीरियड में अचानक खुरदुरी, रूखी, खिंची हुई लगने लगती है. वैज्ञानिक शोध इस बदलाव के कई ठोस कारण बताते हैं.
सबसे पहला कारण है हवा में नमी का गिरना. अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजी (एएडी) के अनुसार, जब तापमान गिरता है तो हवा की आर्द्रता 30–50 फीसदी तक कम हो जाती है. त्वचा की ऊपरी परत, जिसे स्ट्रेटम कॉर्नियम कहा जाता है, नमी को बनाए रखने के लिए वातावरण पर निर्भर होती है. जैसे ही नमी घटती है, यह परत पानी खोने लगती है और त्वचा में माइक्रो-क्रैक्स बन जाते हैं. यही हमारे यहां नवंबर वाली ड्राईनेस का आधार है.
दूसरा बड़ा कारण है ‘ट्रांस-एपिडर्मल वॉटर लॉस (टीईडब्ल्यूएल) का बढ़ जाना. जर्नल ऑफ इंवेस्टिगेटिव डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित शोध बताते हैं कि जब मौसम अचानक बदलता है, त्वचा का बैरियर प्रोटीन “फिलैग्रिन” कमजोर पड़ता है. इसके कारण त्वचा से पानी बाहर निकलने की रफ्तार बढ़ जाती है. नवंबर में दिन-रात के तापमान में बड़ा अंतर होता है, जिससे यह और तेज हो जाती है.
तीसरा कारण है हवा की गति. नवंबर में हवा अधिक शुष्क और तेज चलती है. यह हवा त्वचा की सतह पर मौजूद प्राकृतिक तेलों को हटा देती है. ब्रिटिश जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी की 2019 की स्टडी ने साबित किया कि सिर्फ 15 मिनट की ठंडी हवा भी त्वचा की लिपिड लेयर को 20–25 फीसदी तक कमजोर कर सकती है. यही वजह है कि लोग नवंबर में होंठ फटने, गालों पर जलन और हाथों में रूखापन महसूस करते हैं.
इस मौसम में सीबम का उत्पादन घट जाता है. त्वचा का प्राकृतिक तेल, जिसे सीबम कहते हैं, ठंड में धीरे बनता है. तापमान गिरने पर त्वचा की ऑयल ग्लैंड्स सुस्त पड़ जाती हैं. डर्मेटोलॉजी रिसर्च एंड प्रैक्टिस की एक स्टडी में पाया गया कि नवंबर से जनवरी के बीच सीबम लेवल औसतन 20–30 फीसदी तक कम हो जाता है, खासतौर पर चेहरे और हाथों की त्वचा में. सीबम कम होने से त्वचा की सुरक्षा कवच पतला हो जाता है और नमी तेजी से उड़ जाती है.
नवंबर में यूवी रे भी बदलती हैं. धूप कम होने से विटामिन डी का स्तर गिरता है, जिससे त्वचा की कोशिकाएं धीमी गति से रिन्यू होती हैं. इससे त्वचा थकी और डिहाइड्रेटेड लगने लगती है. हल्की धूप और ठंडी हवा मिलकर त्वचा की संवेदनशीलता भी बढ़ा देते हैं.
एक और रोचक कारण है और वो है स्किन माइक्रोबायोम का बदलना. त्वचा पर अच्छे बैक्टीरिया की एक परत होती है जो नमी संतुलित रखती है. बदलते मौसम की शुष्क हवा इस माइक्रोबायोम को प्रभावित करती है. 2022 की एक स्टडी बताती है कि सर्दियों की शुरुआत में माइक्रोबायोम की विविधता कम हो जाती है, जिससे त्वचा की नमी और कम हो जाती है.
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केआर/