रीजनल सिनेमा की बढ़ती लोकप्रियता पर बोले अनुपम खेर, ‘अब ‘पैन-इंडिया सिनेमा’ बन रही क्षेत्रीय फिल्में’

Mumbai , 14 नवंबर . भारतीय सिनेमा में हिंदी फिल्मों के अलावा देश में तमाम क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में भी दर्शकों के बीच अपनी खास जगह बनाने में कामयाब रही हैं. पिछले कुछ सालों में, खासकर कोविड महामारी के दौरान, लोग घर पर बैठकर ऐसी फिल्मों की तरफ आकर्षित हुए जो पहले शायद उन्होंने नहीं देखी थीं. यह दौर भारतीय सिनेमा के लिए एक नई शुरुआत साबित हुआ.

तमिल, तेलुगु, मलयालम और बंगाली फिल्मों ने न सिर्फ दर्शकों का ध्यान खींचा, बल्कि पूरे देश में अपनी पहचान भी बनाई. इन्हीं बदलते परिदृश्यों पर Actor अनुपम खेर ने अपने विचार साझा किए.

अनुपम खेर ने से बात करते हुए क्षेत्रीय सिनेमा की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता की तारीफ की. उन्होंने कहा, ”यह सिर्फ क्षेत्रीय फिल्में नहीं रही हैं, बल्कि अब यह पूरे India में दर्शकों को आकर्षित करने वाली ‘पैन-इंडिया सिनेमा’ बन चुकी है. इन फिल्मों में भारतीय जीवन की असली और सच्ची कहानियां दिखाई जा रही हैं, जो दर्शकों के दिल को छूती हैं.”

अनुपम खेर ने बताया कि उन्होंने लगभग सभी भारतीय भाषाओं में काम किया है. असमिया और Gujaratी जैसी कुछ भाषाएं छोड़कर उन्होंने तकरीबन कई भाषाओं की फिल्मों में काम किया है.

उन्होंने कहा, ”क्षेत्रीय फिल्म उद्योग अधिक व्यवस्थित और महत्वाकांक्षी हैं. इनका मकसद केवल अपने इलाके में सफल होना नहीं है, बल्कि दुनिया भर में मान्यता और प्रशंसा हासिल करना है. कोविड महामारी ने लोगों को वह फिल्में देखने का मौका दिया जो उन्होंने पहले नहीं देखी थीं. मलयालम, तेलुगु, तमिल और बंगाली फिल्में इस बदलाव का प्रमुख उदाहरण हैं.”

अनुपम खेर का मानना है कि अब लोग अच्छी फिल्में देखने के लिए तैयार हैं और क्षेत्रीय फिल्में यह काम बखूबी कर रही हैं.

उन्होंने कहा, ”हिंदी सिनेमा ने भारतीय कहानियों को दर्शकों तक पहुंचाने की परंपरा कुछ हद तक भुला दी है. फिल्में सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं हैं, बल्कि देश की संस्कृति, जीवन और भारतीयता को पेश करने का माध्यम भी हैं.”

को दिए इंटरव्यू में अनुपम खेर ने आगे बताया कि क्षेत्रीय फिल्म उद्योग सिर्फ अपनी भाषा या इलाके तक सीमित नहीं है. इन फिल्मों में काम करने वाले कलाकार और निर्माता पूरे विश्व में अपने काम को पहचान दिलाने की इच्छा रखते हैं. यही कारण है कि कई क्षेत्रीय फिल्में अब अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाई जा रही हैं और लोगों का ध्यान खींच रही हैं.

उन्होंने इस बदलाव को सराहते हुए कहा कि अब फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सच्ची कहानियों और समाज की वास्तविकताओं को दिखाने का जरिया बन रही हैं.

पीके/एबीएम