1952 से बिहार चुनाव में कांग्रेस का पतन, भाजपा का लगातार बढ़ा वोट शेयर, जानें अब तक के राजनीतिक उतार-चढ़ाव

Patna, 14 नवंबर . बिहार चुनाव के नतीजों में मतदाताओं ने त्रिशंकु विधानसभा की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया है, जैसे कि मुट्ठी भर Political पर्यवेक्षकों ने नीतीश Government के खिलाफ 20 साल की सत्ता विरोधी लहर का अनुमान लगाया था. बिहार की जनता ने जोरदार तरीके से और पर्याप्त स्पष्टता के साथ मतदान किया है कि राज्य की बागडोर कौन संभालेगा.

बिहार चुनाव 2025 में सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए Government के लिए संभवतः सबसे सशक्त और सबसे बड़ा जनादेश है. दोपहर तक के नतीजों के रुझानों के अनुसार, यह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सबसे करारी हार में से एक है.

इस चुनाव की सबसे खास बात यह है कि भाजपा-जदयू गठबंधन के लिए अब तक के ये सर्वश्रेष्ठ आंकड़े हैं, जहां रुझानों के अनुसार, प्रत्येक पार्टी ने 80-90 प्रतिशत से अधिक का स्ट्राइक रेट बनाए रखा है. हालांकि, उनके समर्थन और जनादेश में यह वृद्धि रातोंरात नहीं हुई, बल्कि कई सालों की मेहनत के बाद यह रिजल्ट सामने आया है.

अगर आजादी के बाद के चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो 1952 के चुनाव में 239 सीटें हासिल करने वाली सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस चुनाव में सिंगल डिजिट में सिमट गई है.

1952 के चुनाव में कांग्रेस को 41.38 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन आज यह 10 प्रतिशत से नीचे गिर गया है. 2020 के चुनावों में उसे सिर्फ 9 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे.

कांग्रेस के वोटों में गिरावट 1980 के दशक में शुरू हुई, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आई. बिहार में लालू यादव युग के आगमन के साथ कांग्रेस का वोटिंग प्रतिशत और गिरता चला गया. 1990 के चुनाव में लालू यादव के नेतृत्व वाली जनता दल (जेडी) के हाथों कांग्रेस को करारा झटका लगा और वह पहली बार दूसरे स्थान पर खिसक गई. जेडी को 25.61 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस 24.78 प्रतिशत वोट पर ही सिमट गई.

दूसरी भारी गिरावट नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडी(यू) के उदय के साथ आई. 2000 में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर मात्र 11 प्रतिशत और 23 सीटें रह गई, जबकि उसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार Chief Minister बने तो इस पुरानी पार्टी का प्रदर्शन और भी खराब हो गया, और उसे केवल 5 प्रतिशत वोट और 10 सीटें ही मिलीं. 2010 का चुनाव और भी बुरा रहा, क्योंकि कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटें (8 प्रतिशत वोट शेयर) ही मिली थीं.

हिंदी पट्टी में अजेय रही यह पुरानी पार्टी, राजद और जद(यू) जैसे क्षेत्रीय दलों के उदय के बाद कमजोर पड़ने लगी और आज यह पार्टी ऐसे दोराहे पर खड़ी है जहां उसका पुनरुत्थान बेहद मुश्किल लग रहा है.

दूसरी ओर, भाजपा ने 1980 में 8 प्रतिशत वोट शेयर और 21 सीटों के साथ बिहार में अपनी चुनावी यात्रा शुरू की थी और पिछले कुछ वर्षों में लगातार भाजपा की स्थिति मजबूत होती गई. आज बिहार भाजपा के मजबूत गढ़ों में से एक बन गया है.

1980 से 2010 तक भाजपा के वोट शेयर में लगातार वृद्धि देखी गई और 2014 में जब Prime Minister Narendra Modi केंद्र में आए, इसमें तेजी से वृद्धि हुई. पार्टी के वोट शेयर में 8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई और तब से लगातार ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है.

2025 के चुनावों में, बिहार ने 67.13 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक मतदान प्रतिशत दर्ज किया है, जिसमें पुरुषों की तुलना में महिला मतदाताओं ने 9 प्रतिशत अधिक मतदान किया. सीएम नीतीश कुमार और Prime Minister मोदी दोनों ने वर्षों से महिला हितैषी नीतियों के साथ महिलाओं के लिए समर्पित ‘निर्वाचन क्षेत्र’ को विकसित किया है, इसलिए महिला मतदाताओं में यह वृद्धि स्वाभाविक रूप से उनके खाते में जा रही है.

यह चुनाव बिहार के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, क्योंकि आजादी के बाद से सबसे ज्यादा मतदान हुआ है और 20 वर्षों से सत्ता में रहने के बावजूद मौजूदा Government को जबरदस्त जनादेश मिला है.

इससे पहले भी बिहार चुनाव में मतदान का एक अलग पैटर्न देखने को मिला था, जब 1977 में ‘जन नायक’ कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व वाली जेपी ने 42.68 प्रतिशत मतों के भारी जनादेश के साथ चुनावी मुकाबले में जबरदस्त जीत हासिल की थी. कांग्रेस सिर्फ 57 सीटों पर सिमट गई थी और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था.

डीकेपी/एबीएम