एसआईआर पर बढ़ती बयानबाजी के बीच अभिषेक बनर्जी प्रमुख चेहरा बनकर उभरे

New Delhi, 1 नवंबर . पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के बीच तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी इस प्रक्रिया के खिलाफ राज्य की सत्तारूढ़ Government में प्रमुख चेहरा बनकर उभरे हैं.

डायमंड हार्बर से सांसद आमतौर पर सुर्खियों से दूर रहकर काम करना पसंद करते हैं. 1998 में पार्टी की स्थापना करने वाली Chief Minister ममता बनर्जी लगभग अकेले दम पर इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई थी, पार्टी को आगे बढ़ाने वाला सार्वजनिक चेहरा बनी हुई हैं.

विश्लेषकों का कहना है कि आज भी जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है, मतदाता उनके आह्वान पर ही प्रतिक्रिया देते हैं.

इस बीच, पार्टी में अभिषेक की तेजी से उन्नति और संगठन के बारीक पहलुओं पर उनके ध्यान ने उन्हें पार्टी का स्पष्ट उत्तराधिकारी बना दिया है.

युवा बनर्जी के करीबी माने जाने वाले तृणमूल कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने उनकी वर्तमान स्थिति के बारे में पूछे जाने पर कहा कि उन्हें एक जनरल की भूमिका क्यों नहीं निभानी चाहिए?

यह शब्द पार्टी नेतृत्व को लेकर ‘नए बनाम पुराने’ विवाद के बाद लोकप्रिय हुआ, जहां कुछ सदस्य दोनों नेताओं को ‘ममता हमारी नेता, अभिषेक हमारे जनरल’ मानते हैं.

नाम न बताने की शर्त पर मध्य-स्तरीय नेता ने दावा किया कि अभिषेक आने वाले दिनों में 2026 की पहली छमाही में होने वाले विधानसभा चुनावों तक ‘अधिक सक्रिय’ रहेंगे.

चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर के दूसरे चरण की घोषणा के बाद से अभिषेक पार्टी के संगठनात्मक आधार से हटकर एक ऐसे मुद्दे पर अग्रिम पंक्ति के रणनीतिकार बन गए हैं जो जटिलता और भावनाओं को बढ़ा रहा है.

उन्होंने आक्रामक सार्वजनिक प्रचार किया है, जिससे इस प्रक्रिया को मताधिकार से वंचित करने के एक बड़े आख्यान से जोड़ा जा रहा है और कथित ‘कमजोर मतदाताओं’ को बचाने के लिए तेजी से सक्रिय लामबंदी की जा रही है.

अभिषेक ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस प्रक्रिया के खिलाफ तीखा हमला बोला, हालांकि वे बड़े पैमाने पर मीडिया से औपचारिक बातचीत से बचते हैं.

उन्होंने बाद में अपनी पार्टी के बूथ-स्तरीय एजेंटों को चुनाव आयोग के बूथ-स्तरीय अधिकारियों पर नजर रखने का निर्देश दिया, जो मतदाताओं के सत्यापन के लिए घर-घर जाएंगे.

वह पार्टी की रणनीति बनाने के लिए ब्लॉक और जिलों में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के साथ व्यक्तिगत और वर्चुअल मीटिंग भी कर रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सुवाशीष मैत्रा प्रोसेनियम में उनके कदम को एक ‘एक तरह का रक्षात्मक तरीका’ मानते हैं.

वह बिहार में मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया की ओर इशारा करते हैं, जहां बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाए जाने की आशंका थी. लेकिन अंतिम सूची से हटाए गए मतदाताओं की संख्या 65 लाख थी.

उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में भी अब ऐसी ही स्थिति बन रही है, जहां कुछ भाजपा नेताओं ने करोड़ों फर्जी मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाने का दावा करते हुए बयानबाजी शुरू कर दी है.

उन्होंने आगे कहा कि इसी तरह कुछ तृणमूल कांग्रेस नेताओं ने भी युद्ध का बिगुल फूंक दिया है, जिसमें सूची में ‘छेड़छाड़’ करने पर ‘खून की नदियां’ बहाने की धमकी भी शामिल है.

बहुप्रतीक्षित विधानसभा चुनाव से पहले बढ़ते तापमान ने अभिषेक को सामने ला दिया है. जैसे ही ममता ने अपना रुख तेज किया, भतीजे ने भी सार्वजनिक रूप से आगे आकर एकजुटता और एकजुटता का परिचय दिया.

Union Minister शांतनु ठाकुर जैसे भाजपा नेताओं ने दावा किया कि एसआईआर के दौरान पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची से लगभग 1.2 करोड़ अवैध मतदाताओं का नाम हटाया जा सकता है.

तृणमूल कांग्रेस में युवा बनर्जी का Political उत्थान पार्टी के गलियारों में लंबे समय से दिखाई दे रहा है, चुनावी प्रक्रिया ने उन्हें सार्वजनिक मंच पर लाकर उनके प्रभाव को प्रदर्शित किया है और पश्चिम बंगाल में पार्टी के संगठनात्मक स्वरूप को नया रूप दिया है.

जैसे कोई पहलवान अपना आत्मविश्वास बढ़ाते हुए भी प्रतिद्वंद्वी को आगे बढ़ने के लिए चुनौती देने के लिए अपनी जांघों पर थपथपाता है, वैसे ही मैत्रा का मानना ​​है कि प्रत्येक नेता दूसरे को डराने के लिए एक कहानी गढ़ने की कोशिश कर रहा है.

एएसएच/डीकेपी