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Patna, 28 अक्टूबर . बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की सकरा विधानसभा सीट राजनीति में एक ऐसी पहेली है, जहां जीत और हार का फैसला अक्सर बहुत कम मार्जिन से होता है. साल 2020 का विधानसभा चुनाव सकरा के Political इतिहास में एक रोमांचक अध्याय के तौर पर दर्ज है.
यह मुकाबला इतना नजदीकी था कि अंतिम गिनती तक हर किसी की सांसें अटकी हुई थीं. जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के उम्मीदवार अशोक कुमार चौधरी ने इस मुकाबले में इंडियन नेशनल कांग्रेस के उमेश कुमार राम को मात दी, लेकिन जीत का अंतर सिर्फ 1,537 वोट था.
सकरा सीट का इतिहास दिखाता है कि यहां की जनता किसी एक दल के साथ बंधकर नहीं रहती. यह मिजाज बदलती रहती है. 2015 के चुनाव में, यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पास थी. उस समय राजद के लाल बाबू राम ने शानदार जीत हासिल की थी. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अर्जुन राम को बड़े अंतर से हराया था.
वहीं, 2010 में सकरा सीट पर जदयू के सुरेश चंचल ने राजद के लाल बाबू राम को ही भारी वोटों के अंतर से हराया था. इस तरह, पिछले तीन चुनावों में यह सीट जदयू, राजद और फिर जदयू के खाते में गई है. यह स्पष्ट संकेत है कि सकरा की जनता हर बार नई उम्मीद और नए समीकरणों पर मुहर लगाती है.
सकरा विधानसभा क्षेत्र की Political पहचान सिर्फ चुनावों तक सीमित नहीं है. यह मुजफ्फरपुर Lok Sabha क्षेत्र के अंतर्गत आती है और समस्तीपुर तथा वैशाली जैसे महत्वपूर्ण जिलों से सटी हुई है, जो इसे रणनीतिक रूप से खास बनाती है.
2020 की वोटर लिस्ट के अनुसार, इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 56 हजार मतदाता हैं, जो किसी भी उम्मीदवार का भविष्य तय करने की क्षमता रखते हैं.
यहां के वोट बैंक में मुस्लिम और यादव मतदाता सबसे अहम भूमिका निभाते हैं. माना जाता है कि इन दोनों समुदायों का समर्थन जिस उम्मीदवार को मिलता है, उसकी राह आसान हो जाती है. हालांकि, अन्य प्रभावशाली समुदायों जैसे राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण, कोइरी, रविदास और पासवान मतदाताओं का प्रभाव भी निर्णायक होता है.
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वीकेयू/एबीएम