छठ पर्व में क्यों होता है केले के पत्ते और आम की लकड़ी का इस्तेमाल? जानें आध्यात्मिक महत्व

New Delhi, 26 अक्टूबर . लोक आस्था के महापर्व छठ पर्व की शुरुआत Saturday से हो चुकी है. पहले दिन नहाए-खाए के साथ शुरुआत होती है. Sunday को छठ पर्व का दूसरा दिन यानी खरना है. इस महापर्व पर आम की लकड़ी और केले के पत्ते का इस्तेमाल होता है, लेकिन क्यों? आइए ये जानने की कोशिश करते हैं.

Sunday से व्रती महिलाओं का 36 घंटों का निर्जला उपवास शुरू हो गया है और व्रती पूरी श्रद्धा और भाव के साथ मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ियों के साथ प्रसाद बनाती हैं.

ये प्रसाद सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ग्रहण किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि खाना पकाने में सिर्फ आम की लकड़ियों का ही प्रयोग क्यों होता है और प्रसाद को सिर्फ केले के पत्ते पर ही क्यों परोसा जाता है.

छठ का त्योहार पूरी आस्था, शुद्धि और नियम के साथ किया जाता है. मिट्टी के नए चूल्हे पर व्रती खाना बनाती हैं और आम की लकड़ियों का इस्तेमाल करती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि छठी मइया को प्रकृति की देवी माना जाता है. मार्कण्‍डेय पुराण में इस बात का जिक्र किया गया है कि छठी मइया प्रकृति का छठवां हिस्सा है. भगवान ब्रह्मा ने जब प्रकृति को बनाया तो छह हिस्सों में बांट दिया और इस हिस्से को मां छठी को समर्पित कर दिया.

आम की लकड़ियों को सबसे शुद्ध माना जाता है. हवन और पूजा पाठ में आम की लकड़ियों का ही इस्तेमाल होता है और उन्हें सबसे शुद्ध माना जाता है. ऐसे में खरना के प्रसाद को शुद्ध बनाने के लिए चूल्हे में सिर्फ आम की लकड़ियों का इस्तेमाल सदियों से होता आ रहा है और आज भी ये परंपरा जारी है.

खरना के प्रसाद को केले के पत्तों पर परोसा जाता है. पहले केले के पत्तों को पानी से साफ किया जाता है और फिर पत्ते पर कई जगह रखा जाता है. खरना में केले के पत्ते का अलग महत्व है. धार्मिक अनुष्ठानों में सदियों से केले के पत्ते का इस्तेमाल होता आया है. शादी, पूजा-पाठ, दरवाजा और मंडप तक को सजाने में केले के पत्ते का इस्तेमाल उत्तर से लेकर दक्षिण तक के राज्यों में किया जाता है. माना जाता है कि केले के पेड़ और पत्ते पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का वास होता है और इसकी पूजा करने या पत्तों का इस्तेमाल करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और हर बाधा दूर होती है. इसके अलावा घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है.

पीएस/वीसी