देहरादून, 15 अक्टूबर . दीपावली का पावन पर्व नजदीक आते ही राजधानी देहरादून में तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो चुकी हैं. बाजारों में रौनक बढ़ने के साथ ही मिट्टी के दीए, लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां और करवे की मांग में तेजी देखने को मिल रही है.
खासकर, चकराता रोड स्थित कुम्हार मंडी में कुम्हार दिन-रात मिट्टी के दीए और मूर्तियां तैयार करने में जुटे हैं. इस बार स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के Governmentी अभियान का असर भी साफ दिख रहा है, जिससे स्थानीय कुम्हारों के उत्पादों की मांग बढ़ी है.
कुम्हार मंडी के कारीगर दीपावली से छह महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं. रंग-बिरंगे और आकर्षक डिजाइनों वाले दीए और मूर्तियां तैयार की जा रही हैं, जो उपभोक्ताओं को खूब पसंद आ रही हैं. हालांकि, कुम्हारों के सामने मिट्टी की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.
कुम्हारों का कहना है कि कुछ चुनिंदा स्थानों से ही उपयुक्त मिट्टी मिल पाती है, और इसकी कमी के कारण दीए बनाने में दिक्कतें आ रही हैं. कई कुम्हारों ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों और Government से पर्याप्त मिट्टी उपलब्ध कराने की मांग की है. इस कमी के चलते कुछ कुम्हारों को Gujarat, कोलकाता, दिल्ली और Mumbai जैसे राज्यों से सामान मंगवाने पड़ रहे हैं.
इस साल मानसून के दौरान भारी बारिश ने भी कुम्हारों की मुश्किलें बढ़ाईं. अत्यधिक बारिश के कारण कई कुम्हार पर्याप्त मात्रा में दीए नहीं बना पाए. इसके बावजूद, मिट्टी के दीए और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की मांग में कोई कमी नहीं आई है.
कुछ कुम्हारों ने बताया कि उनके द्वारा बनाए गए दीए थोक में बिक चुके हैं, जिसके चलते अब वे अन्य राज्यों से फैंसी दीए और मूर्तियां मंगा रहे हैं.
वहीं, कुछ दुकानदारों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर बने मिट्टी के दीए और मूर्तियां ग्राहकों की पहली पसंद हैं, क्योंकि ये हमारी संस्कृति से जुड़े हैं और मिट्टी की शुद्धता को महत्व दिया जा रहा है.
दीपावली की खरीदारी शुरू हो चुकी है और लोग मिट्टी के दीए, करवे और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को प्राथमिकता दे रहे हैं. उपभोक्ताओं का मानना है कि मिट्टी के दीए और मूर्तियां न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर हैं, बल्कि ये दीपावली पूजन के लिए शुद्ध और शास्त्र सम्मत भी हैं. वहीं, दीपावली के मौके पर मिठाइयों की मांग भी बढ़ गई है.
देहरादून में दीपावली की तैयारियां जारी हैं. कुम्हार मंडी के कारीगरों की मेहनत और स्वदेशी उत्पादों के प्रति लोगों का रुझान इस पर्व को और भी खास बना रहा है.
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एकेएस/एबीएम