ढाका, 6 अक्टूबर . बांग्लादेश की पूर्व विदेश, शिक्षा और समाज कल्याण मंत्री और अवामी लीग पार्टी की संयुक्त सचिव दीपू मोनी ने Monday को मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम Government पर निशाना साधा और अधिकारियों पर हिरासत में लिए गए विपक्षी नेताओं को चिकित्सा उपचार से वंचित करने का आरोप लगाया.
ढाका के मुख्य महानगर दंडाधिकारी की अदालत में रिमांड सुनवाई के दौरान, मोनी ने अपने पूर्व कैबिनेट सहयोगी नूरुल मजीद महमूद हुमायूं की हाल ही में हुई मौत का जिक्र किया. ढाका मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (डीएमसीएच) में उनकी मृत्यु से ठीक पहले उन्हें भी हिरासत में लिया गया था और चार बार अस्पताल ले जाया गया था.
उन्होंने न्यायाधीश से कहा, “नूरुल मजीद महमूद हुमायूं की मौत इलाज के अभाव में हुई.” प्रमुख बांग्लादेशी दैनिक प्रोथोम आलो की रिपोर्ट के अनुसार, Monday को अदालत में मोनी के हवाले से कहा गया, “क्या हमें यह साबित करने के लिए मरना होगा कि हम बीमार हैं?”
अवामी लीग नेता की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब स्थानीय Police जुलाई के विद्रोह से जुड़े अलग-अलग हत्या के मामलों में उनसे और उनके पूर्व पार्टी सहयोगी और सांसद सुलेमान सलीम से पूछताछ करना चाहती है.
शाहबाग Police स्टेशन के जांचकर्ताओं ने 5 अगस्त, 2024 को विरोध प्रदर्शन के दौरान गोलीबारी में मारे गए एक छोटे जूट व्यापारी, मोहम्मद मोनिर की हत्या के मामले में मोनी की रिमांड मांगी है.
प्रथोम आलो की रिपोर्ट के अनुसार, बचाव पक्ष के वकील गाजी फैसल इस्लाम ने रिमांड याचिका का विरोध किया और जमानत के लिए आवेदन किया. उन्होंने तर्क दिया कि दीपू मोनी, जो महीनों से हिरासत में हैं, अस्वस्थ हैं और बिना किसी ठोस सबूत के मामले में उनका नाम दर्ज किया गया है.
जब न्यायाधीश ने उन्हें बोलने की अनुमति दी, तो अवामी लीग की पूर्व संयुक्त महासचिव ने अपनी स्वास्थ्य समस्याओं और निराशा के बारे में विस्तार से बताया.
“पिछले अगस्त से मेरी तबियत ठीक नहीं है. मुझे कुछ मेडिकल डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाने हैं जिनसे मस्तिष्क के स्वास्थ्य का आकलन किया जा सके. 9 या 10 सितंबर के आसपास, मुझे बीमार होने के कारण शहीद ताजुद्दीन अहमद मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां सभी मेडिकल टेस्ट पूरे नहीं हो सके.”
उन्होंने कहा, “बाद में, आगे की जांच के लिए मुझे दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी गई. मुझे कल वहां ले जाया जाना था, लेकिन Police एस्कॉर्ट उपलब्ध न होने के कारण ऐसा नहीं हो सका. मुझे लगा था कि आज मुझे ले जाया जाएगा, लेकिन इसके बजाय मुझे अदालत ले जाया गया. कुछ नहीं हो रहा है. मैं एक साल से ज्यादा समय से गाजीपुर के काशिमपुर महिला कारागार में रह रही हूं.”
उन्होंने आगे कहा, “वे कहते हैं कि मुझे अस्पताल ले जाने के लिए कोई Police दस्ता नहीं है, फिर भी वे मुझे अदालत ले आए. मैं न्याय की गुहार लगा रही हूं. मुझे जरूरी इलाज नहीं मिल रहा है.”
मोनी ने यह भी शिकायत की कि उन्हें कानूनी सलाह तक नहीं मिल रही है.
उन्होंने कहा, “मेरे खिलाफ 60 से ज्यादा मामले हैं, लेकिन मैं अपने वकीलों से ठीक से मिल नहीं पाई हूं. पिछले एक साल में, मैंने उनसे सिर्फ तीन बार मुलाकात की है.”
अखबार ने मोनी के हवाले से कहा, “जिन दिनों मुझे अदालत ले जाया जाता है, मैं अदालत के लॉकअप में अपने वकील से मिलने की इजाजत मांगती हूं ताकि मैं कम से कम अपने मामलों पर चर्चा कर सकूं.”
Governmentी वकील उमर फारूक फारूकी ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि मौजूदा जेल नियमों के तहत जेल के दरवाजे पर मुलाकातें तय की जा सकती हैं.
फारूकी के बोलने के बाद, मोनी ने अंत में दृढ़ता से कहा, “क्या हमें यह साबित करने के लिए मरना होगा कि हम बीमार हैं?”
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने Police को मोनी से चार दिनों तक पूछताछ करने की इजाजत दे दी. बाद में उन्हें गाजीपुर के काशिमपुर महिला कारागार ले जाया गया.
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केआर/