बिहार चुनाव 2025: क्या तेज प्रताप की राजद से बेदखली बदलेगी हसनपुर में जीत का समीकरण?

Patna, 4 अक्टूबर . बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. Political दल बेसब्री से चुनाव तारीखों की घोषणा होने का इंतजार कर रहे हैं. बिहार की चुनावी बिसात पर कुछ सीटें ऐसी होती हैं जो सिर्फ विधायक नहीं चुनतीं, बल्कि सत्ता के समीकरणों को भी उलटफेर कर देती हैं. एक ऐसी ही सीट समस्तीपुर जिले के रोसड़ा अनुमंडल में स्थित हसनपुर है.

साल 2000 के बाद से यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जदयू के बीच सीधी टक्कर का केंद्र बन गई, लेकिन इस सीट को असली राष्ट्रीय सुर्खियां तब मिलीं, जब 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने अपने प्रमुख नेता लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को यहां से उम्मीदवार बनाया.

यह खगड़िया Lok Sabha क्षेत्र का हिस्सा है और इसकी राजनीति हमेशा से जमीन और जमीर की लड़ाई रही है, जहां एक ओर सादगी भरी समाजवादी विचारधारा का गढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर यह लालू प्रसाद यादव के परिवार की रणनीति का प्रयोग स्थल भी बन गया.

तेज प्रताप यादव, जो अपनी विवादास्पद छवि और असामान्य Political व्यवहार के लिए अक्सर चर्चा में रहते हैं, पहले वैशाली जिले के महुआ से विधायक थे. 2015 में महुआ में उनकी जीत का अंतर (करीब 21,000 वोट) था. इसके बाद लालू यादव ने तेज प्रताप के लिए एक ‘सुरक्षित सीट’ की तलाश की और उनकी नजर हसनपुर पर पड़ी, क्योंकि यह यादव बाहुल्य सीट है.

इस चयन की वजह साफ थी. हसनपुर में यादव समुदाय की आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है, जो किसी भी यादव उम्मीदवार के लिए एक ठोस आधार प्रदान करती है. यह रणनीति सफल साबित हुई. 2020 के चुनाव में, राजद के तेज प्रताप यादव ने जदयू के राजकुमार राय को 21,139 वोटों के बड़े अंतर से मात दी. तेज प्रताप को 80,991 मत (47.27 प्रतिशत) मिले, जबकि राजकुमार राय को 59,852 मत (34.93 प्रतिशत) प्राप्त हुए. यह जीत परिवार और पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न थी और यादव-मुस्लिम समीकरण ने इसे सुनिश्चित किया.

बात हसनपुर के Political इतिहास की करें तो 1967 में इस सीट के गठन के साथ चुनाव शुरू हुआ और शुरुआती चार दशकों तक गजेंद्र प्रसाद हिमांशु के नाम के इर्द-गिर्द घूमता रहा.

सात बार इस सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले हिमांशु ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से लेकर जनता पार्टी (सेक्युलर), जनता दल और अंततः जनता दल (यूनाइटेड) तक, विभिन्न समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियों के बैनर तले जीत दर्ज की. उनके Political करियर में दो बार मंत्री और बिहार विधानसभा के उप-अध्यक्ष का पद शामिल रहा.

एक बार तो उन्होंने पार्टी के हित में Chief Minister पद के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था, जो बिहार की राजनीति में उनके उच्च नैतिक कद को दर्शाता है. हिमांशु की जीत की यात्रा ने हसनपुर को एक ऐसा गढ़ बना दिया, जहां उम्मीदवार की निष्ठा और सिद्धांत, पार्टी के नाम से ज्यादा मायने रखते थे.

हसनपुर पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र है, जहां की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है. यह क्षेत्र कमला और बूढ़ी गंडक नदियों के बहाव के कारण कृषि के लिए अत्यंत उपजाऊ बना हुआ है.

चुनावी गणित की बात करें तो हसनपुर में लगभग 2,99,401 (2024 तक) पंजीकृत मतदाता हैं. यहां का जातीय समीकरण चार स्तंभों पर टिका है, जिसमें यादव, कुशवाहा, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग शामिल हैं. यहां यादव 30 प्रतिशत से अधिक, अनुसूचित जाति 17.55 प्रतिशत और मुस्लिम 11.20 प्रतिशत के करीब हैं.

राजद पारंपरिक रूप से यादव-मुस्लिम समीकरण के सहारे चुनाव लड़ता रहा है, लेकिन जदयू और भाजपा का गठबंधन अति पिछड़ा वर्ग, कुशवाहा और महादलित मतदाताओं को साधने में सफल रहा है.

हसनपुर अब सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि वंशवाद की राजनीति, जन-प्रतिनिधि की जवाबदेही और बिहार के बदलते जातीय-Political समीकरणों का एक महत्वपूर्ण बैरोमीटर बन गया है.

जैसा की हसनपुर यादव-मुस्लिम बाहुल्य सीट है तो यहां 2020 के विधानसभा चुनाव में लालू परिवार अपना एमवाई समीकरण साधने में सफल रहा, पर शुरुआती तौर से यह सीट जदयू का भी गढ़ रही है. इस बार के चुनाव में इस सीट पर राजद और जदयू के बीच कांटे की टक्कर होने वाली है. ध्यान देने वाली बात यह है कि लालू परिवार ने तेज प्रताप को पार्टी से बेदखल कर दिया है और तेज प्रताप ने खुद की अपनी अलग पार्टी बना ली है.

वीकेयू/वीसी