सिर्फ उपवास का साथी नहीं, सेहत का भी खजाना है साबूदाना! जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

New Delhi, 29 सितंबर . India में उपवास या व्रत की बात हो और साबूदाना का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. छोटे-छोटे सफेद मोती जैसे दिखने वाले ये दाने ना सिर्फ स्वाद में लाजवाब होते हैं, बल्कि सेहत के लिहाज से भी बेहद फायदेमंद माने जाते हैं.

साबूदाना को टैपियोका पर्ल्स या सागो भी कहा जाता है. यह कसावा नामक पौधे की जड़ों से तैयार किया जाता है. पहले इन जड़ों को साफ किया जाता है और फिर इनसे स्टार्च निकाला जाता है. इस स्टार्च को गाढ़ा घोल बनाकर छोटे दानों का रूप दिया जाता है और फिर सुखाकर पैक किया जाता है.

पोषक तत्वों की बात करें तो साबूदाना मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है, जो शरीर को तत्काल ऊर्जा प्रदान करता है. इसमें कैल्शियम और आयरन जैसे मिनरल्स भी पाए जाते हैं, जो हड्डियों और रक्त निर्माण के लिए उपयोगी हैं. पोटैशियम की मौजूदगी इसे दिल और ब्लड प्रेशर के लिए फायदेमंद बनाती है, वहीं इसमें मौजूद फाइबर पाचन को दुरुस्त करता है. यही वजह है कि यह विशेष रूप से उपवास, कमजोरी या पाचन से जुड़ी समस्याओं में खाया जाता है.

आयुर्वेद के अनुसार, साबूदाना शीतल (कूलिंग) और बल्य (ऊर्जा देने वाला) होता है. यह वात और पित्त को संतुलित करता है, हालांकि कफ को बढ़ा सकता है. इसे तपेदिक, अधिक पसीना, कमजोरी और डिहाइड्रेशन जैसी स्थितियों में खाने की सलाह दी जाती है. गर्मियों में यह शरीर को ठंडक देने का भी काम करता है. हल्का और एनर्जी से भरपूर होने के कारण इसे गर्भवती महिलाओं के लिए भी उपयोगी माना जाता है.

साबूदाना खिचड़ी, वड़ा, खीर, उपमा, टिक्की और यहां तक कि स्मूदी जैसे अनेक स्वादिष्ट और पौष्टिक रूपों में सेवन किया जा सकता है. हालांकि, ध्यान देने वाली बात यह है कि कच्चे या अधपके कसावा स्टार्च में सायनाइड जैसे विषैले तत्व हो सकते हैं, इसलिए साबूदाने को अच्छी तरह पकाना बेहद जरूरी है. साथ ही, डायबिटीज के मरीजों को इसे सीमित मात्रा में ही लेना चाहिए, क्योंकि इसमें शुद्ध कार्बोहाइड्रेट होता है जो शुगर लेवल बढ़ा सकता है.

पीआईएस/एएस