कार्टूनों से दिल जीतने वाले ‘चंदा मामा’ थे केसी शिवशंकर

New Delhi, 28 सितंबर . आज के डिजिटल युग में कार्टून टीवी और मोबाइल पर देखे जाते हैं, लेकिन एक समय था जब बच्चे किताबों और पत्रिकाओं में छपे कार्टून देखकर खुश हो जाते थे. ऐसी ही एक पत्रिका थी ‘चंदामामा’, जिसके कार्टून और कहानियां बच्चों के दिलों में बसी थीं. इस पत्रिका को खास बनाने वाले मशहूर कार्टूनिस्ट केसी शिवशंकर, जिन्हें लोग प्यार से ‘चंदा मामा’ कहते थे. उनकी बनाई ‘विक्रम-बेताल’ की तस्वीरें आज भी लोगों को याद हैं. आइए 29 सितंबर को उनकी पुण्यतिथि पर उनकी जिंदगी और कला की कहानी आसान शब्दों में जानते हैं.

केसी शिवशंकर एक सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले कलाकार थे. साल 1927 में उनका जन्म हुआ था. बचपन से ही उन्हें चित्रकला का शौक था, और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान कला की ओर कर लिया. उन्होंने पत्रिका ‘कलैमगल’ में पहली नौकरी की, जहां उन्होंने इलस्ट्रेशन और कवर डिजाइन का काम किया. यह उनके कला जीवन का पहला पड़ाव था, जो उन्हें आगे की राह दिखाने वाला साबित हुआ.

इसके बाद वे ‘चंदमामा’ पत्रिका से जुड़े, जो India की सबसे प्रसिद्ध बाल पत्रिका थी. यहां उन्होंने अपने जीवन का लंबा समय बिताया. उनकी रेखाचित्र शैली सरल लेकिन जीवंत थी, जो भारतीय लोककथाओं को आधुनिक रूप देती थी. पत्रिका में उनके द्वारा बनाए गए चित्रों ने लाखों बच्चों को मंत्रमुग्ध किया, क्योंकि वे राजा विक्रम की वीरता और बेताल की चतुराई को इतनी सजीवता से दर्शाते थे कि पाठक कहानी में खो जाते थे.

शिवशंकर की कला शैली में भारतीय संस्कृति और परंपराओं का खूबसूरती से समावेश था. उनके बनाए चित्र न केवल कहानी को दृश्य रूप देते थे, बल्कि बच्चों में भारतीय कला और संस्कृति के प्रति रुचि भी जगाते थे. उनकी यह कला पत्रिका की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण बनी.

यह श्रृंखला इतनी लोकप्रिय हुई और बाद में टेलीविजन सीरीज के रूप में भी बनी. केसी शिवशंकर का निधन 29 सितंबर 2020 को हुआ था. उनकी मृत्यु के एक साल बाद 2021 में, India Government ने उनकी कला और भारतीय कार्टून जगत में उनके योगदान के लिए उन्हें मरणोपरांत ‘पद्मश्री’ सम्मान से नवाजा.

केसी शिवशंकर, जिन्हें ‘चंदा मामा’ के नाम से जाना गया. उन्होंने अपनी कला के माध्यम से भारतीय संस्कृति को जीवंत किया. उनके बनाए विक्रम-बेताल के चित्र आज भी लोगों की यादों में बसे हैं. ‘चंदामामा’ पत्रिका और शिवशंकर की कला ने न केवल एक पीढ़ी को प्रेरित किया, बल्कि भारतीय कार्टून कला को एक नई पहचान दी.

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