New Delhi, 27 सितंबर . India के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) का पद आज देश के सबसे शक्तिशाली पदों में से एक माना जाता है और वर्तमान एनएसए अजित डोभाल इसकी मिसाल हैं. लेकिन इस पद की नींव रखने और इसे रणनीतिक महत्व प्रदान करने वाले शख्स थे बृजेश मिश्रा. वे India के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और तत्कालीन Prime Minister अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव थे. वे काफी पावरफुल थे और उनके कार्यकाल ने India की सुरक्षा और कूटनीति को नई दिशा दी.
29 सितंबर 1928 को Madhya Pradesh में जन्मे ब्रजेश मिश्रा एक Political परिवार से थे. उनके पिता द्वारका प्रसाद मिश्रा Madhya Pradesh के पूर्व Chief Minister और इंदिरा गांधी के करीबी सहयोगी थे. परिवार से ही उन्होंने राजनीति और कूटनीति की बारीकियां सीखी.
हालांकि, उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियां अधिक पसंद थीं. इसीलिए उन्होंने भाजपा का दामन भी थामा था.
1951 में भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में शामिल होने के बाद मिश्रा ने अपने कूटनीतिक करियर की शुरुआत की. उन्होंने इंडोनेशिया में India के राजदूत और जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के पास India के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में अपनी सेवाएं दीं.
विदेश मंत्रालय में सचिव के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद 1998 में वे वाजपेयी Government में प्रधान सचिव और India के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त हुए, जिसे उन्होंने मई 2004 तक संभाला. 1998 के पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में उनकी केंद्रीय भूमिका थी.
जब कई देशों ने India के खिलाफ प्रतिबंधों की धमकी दी, तो मिश्रा ने अपने कूटनीतिक कौशल से वैश्विक मंच पर India का पक्ष मजबूती से रखा.
उन्होंने रूस का समर्थन हासिल किया और अमेरिका, चीन व यूरोपीय संघ की आलोचनाओं को निष्प्रभावी किया. इसके अलावा, वाजपेयी की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा, Pakistan और चीन के साथ संबंधों में सुधार, और अमेरिका के साथ रणनीतिक संवाद की शुरुआत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.
मिश्रा ने भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधि के रूप में भी वार्ताएं कीं. वाजपेयी के विश्वसनीय सलाहकार के रूप में उन्होंने संकटमोचक की भूमिका निभाई.
उन्होंने India की राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति को एक मजबूत संरचना प्रदान की. उनकी दूरदृष्टि ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त बनाया, जो आज भी देश की सुरक्षा नीतियों का आधार है.
28 सितंबर 2012 को New Delhi में दिल की बीमारी के कारण उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु को एक युग का अंत माना गया, लेकिन उनकी विरासत India की वैश्विक छवि में आज भी जीवित है.
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डीकेएम/डीएससी