जौनपुर, 27 सितंबर . उत्तर प्रदेश के जौनपुर की रहने वाली सुनीता पटेल ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि वे महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाओं को धरातल पर लाए हैं. वे महिलाएं जो पहले कुछ करना चाहती थीं और जिन्हें प्लेटफॉर्म नहीं मिल रहा था, अब पीएम मोदी की योजनाओं से लाभान्वित होकर सशक्त बन रही हैं.
सुनीता पटेल जौनपुर में एक छोटा सा कारखाना चलाती हैं. उन्होंने बताया कि पहले 4 से 5 हजार रुपए की बचत ही हो पाती थी, लेकिन आज महीने का 20 हजार रुपए का मुनाफा हो रहा है. उन्होंने कहा कि पिछली Governmentों ने महिलाओं के बारे में कभी नहीं सोचा. महिलाएं अगर निजी नौकरी भी करें तो उन्हें शोषण का शिकार होना पड़ता था. पीएम मोदी ने योजनाएं शुरू कर हम लोगों को नया जीवन दिया है. हम लोग आत्मनिर्भर हो चुके हैं और अपना काम करते हुए गर्व महसूस कर रहे हैं.
बता दें कि Prime Minister Narendra Modi के आत्मनिर्भर India के सपने को साकार करने में राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इस योजना के तहत जौनपुर की महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि समाज में अपनी एक अलग पहचान भी स्थापित कर रही हैं.
सुनीता पटेल ने बताया कि वह पहले एक कॉलेज में निजी शिक्षिका के रूप में पढ़ाती थीं, जहां उन्हें जीविकोपार्जन के लिए महज 3,000 रुपए मासिक मिलते थे. उनकी एक सहयोगी, जो वर्तमान में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं, ने स्वयं सहायता समूह के बारे में बताया और इसमें शामिल होने के लिए प्रेरित किया. सुनीता ने इसके बाद 10 महिलाओं को जोड़कर एक समूह बनाया. इस समूह के माध्यम से उन्हें बैंक से 1 लाख रुपए का ऋण आसानी से प्राप्त हो गया. इस राशि से उन्होंने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर पर्स बनाने का एक छोटा कारखाना शुरू किया.
आज यह समूह मासिक 15 से 20 हजार रुपए तक की कमाई कर रहा है. उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनाए गए पर्स थोक में 90 रुपए और फुटकर में 140 रुपए में बिकते हैं. त्योहारी सीजन के कारण बाजार में इनकी मांग बढ़ गई है, खासकर सोने-चांदी के दुकानदारों से बड़े ऑर्डर मिल रहे हैं. उन्होंने बताया कि पर्स बनाने के लिए कच्चा माल मछलीशहर बाजार से आता है.
पीएम मोदी की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने महिलाओं के लिए जो किया, वह अत्यंत सराहनीय है. पहले महिलाएं दबी हुई महसूस करती थीं, निजी नौकरियों में अधिक मेहनत के बदले कम वेतन और शोषण का सामना करना पड़ता था. अब उनके द्वारा दिखाए रास्तों से स्वरोजगार के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है.
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डीकेएम/एससीएच