ग्रेटर नोएडा, 26 सितंबर . ‘उत्तर प्रदेश इंटरनेशनल ट्रेड शो- 2025’ में प्रयागराज के मूंज से बने उत्पादों ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. परंपरागत कला और कुटीर उद्योग से जुड़े इन उत्पादों की डिमांड अब राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तेजी से बढ़ रही है.
प्रयागराज से जुड़ी यह विशिष्ट कला ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट’ (ओडीओपी) योजना में भी शामिल है.
प्रयागराज के ‘द परफेक्ट बाजार’ के पार्टनर पवन कुमार मिश्रा ने बताया कि वर्तमान समय में उनके साथ लगभग 50 महिलाएं काम कर रही हैं. इन महिला कामगारों का जीवनयापन पूरी तरह इस कुटीर उद्योग पर निर्भर है. यही नहीं, प्रयागराज के मूंज उत्पादों को जीआई टैग भी प्राप्त है, जिससे इन्हें विशिष्ट पहचान मिली है.
उन्होंने बताया कि सड़क और नदी किनारे उगने वाले सरपत नामक पौधे की ऊपरी परत को निकालकर सुखाया जाता है. इसे मूंज कहा जाता है. मूंज को पूरी तरह सुखाने के बाद गुच्छों का रूप दिया जाता है, जिन्हें बल्ला कहते हैं. इन बल्लों को रंगाई के लिए पानी और रंग के मिश्रण में उबाला जाता है, जिससे चमकदार और टिकाऊ रंग चढ़ता है. इसके बाद विशेष प्रकार की घास कास पर मूंज को लपेटकर विभिन्न तरह के उपयोगी और सजावटी उत्पाद बनाए जाते हैं.
मूंज से तैयार उत्पादों में डलिया, पेन स्टैंड, रोटी रखने के बर्तन, गमले, हैंडबैग और सजावटी सामान शामिल हैं. कुल मिलाकर अब तक 152 से अधिक प्रकार के उत्पाद तैयार किए जा चुके हैं. ट्रेड शो में इन उत्पादों को पहली बार प्रदर्शित किया गया, जहां इन्हें आगंतुकों ने बेहद सराहा.
पवन कुमार मिश्रा ने बताया कि मूंज की एक 11 इंच की डलिया बनाने में लगभग आठ घंटे का समय लगता है. एक महिला पूरी डलिया तैयार करती है, फिर रंगाई और सजावट का काम होता है. खास बात यह है कि मूंज से बने उत्पाद वर्षों तक टिकाऊ रहते हैं और उन्हें पानी से धोकर भी दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. कभी अतीत का हिस्सा बनती जा रही यह कला अब आधुनिकता के साथ नए स्वरूप में सामने आ रही है.
मूंज से बने उत्पाद न केवल देश के बाजारों में पसंद किए जा रहे हैं बल्कि विदेशों से भी इनके ऑर्डर मिल रहे हैं. ट्रेड शो ने इन उत्पादों को एक बड़ा प्लेटफॉर्म दिया है, जिससे प्रयागराज की इस दुर्लभ कला को वैश्विक पहचान मिलने का रास्ता और अधिक मजबूत हुआ है.
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पीकेटी/एबीएम