समाज सुधारक वीएस श्रीनिवास शास्त्री ने रॉलेट एक्ट का किया था विरोध, स्वशासन के लिए गए थे इंग्लैंड

New Delhi, 21 सितंबर . इतिहास में कई समाज सुधारकों ने देश को एक नई दिशा दी है, जिनमें वीएस श्रीनिवास शास्त्री भी शामिल हैं, जो एक प्रसिद्ध और सम्मानित समाज सुधारक थे. उन्होंने न सिर्फ सामाजिक सुधारों के लिए कार्य किया, बल्कि देश की राजनीति, नैतिक मूल्यों और शिक्षा को मजबूत करने में अहम रोल निभाया. आइए वीएस श्रीनिवास शास्त्री की जयंती पर उनके जीवन के बारे में जानते हैं.

कर्नाटक के तंजावुर जिले में वीएस श्रीनिवास शास्त्री का जन्म 22 सितंबर 1869 को हुआ था. उनके पिता मंदिर में पुजारी थे, जिससे उनका बचपन धार्मिक माहौल में बीता. श्रीनिवास शास्त्री के जीवन पर उनके पिता का काफी प्रभाव पड़ा और उन्होंने आगे चलकर समाज में बदलाव और सुधार के लिए काम किया.

एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्मे श्रीनिवास शास्त्री पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज थे. उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की और आगे चलकर एक फेमस टीचर, एडवोकेट और वक्ता बने. शास्त्री पर भारतीय स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले का भी असर पड़ा, इसलिए वे उनकी संस्था सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी में शामिल हुए थे. इसके बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और वे साल 1908 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मेंबर बने. साल 1913 में श्रीनिवास शास्त्री मद्रास विधान परिषद के लिए नामित हुए और फिर साल 1916 में उन्हें देश की इंपीरियल विधान परिषद के लिए नामित किया गया.

वीएस श्रीनिवास शास्त्री ने ब्रिटिश Government के औपनिवेशिक कानून रॉलेट एक्ट का विरोध किया था और इंपीरियल विधान परिषद में इस बिल के विरोध में भाषण दिया था. पूरे देश में उनके भाषण की चर्चा हुई. बाद में श्रीनिवास शास्त्री को यूनाइटेड किंगडम की प्रिवी काउंसिल का मेंबर बनाया गया. इस बीच उनकी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच मतभेद हुए और साल 1922 में उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने ‘इंडियन लिबरल फेडरेशन’ की स्थापना की.

साल 1922 में ब्रिटिश Government की ओर से वीएस श्रीनिवास शास्त्री ने ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा की यात्रा की. उनके दौरे का उद्देश्य विदेशों में रहने वाले भारतीयों की दशा को सुधारना था. वे साल 1924 में India के लिए स्वशासन की मांग के लिए एनी बेसेंट के साथ इंग्लैंड गए थे. साल 1930 से 1931 तक लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने India के भविष्य पर चर्चा करने के लिए भाग लिया था. वे अन्नामलाई विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे. भारतीय समाज को सुधारने में भूमिका निभाने वाले श्रीनिवास शास्त्री का 17 अप्रैल 1946 को निधन हुआ था.

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