आकाश चोपड़ा : बल्ले की जगह माइक ने बदली तकदीर, लिखी सफलता की बड़ी कहानी

New Delhi, 18 सितंबर . कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है. गीत ऋषि गोपालदास नीरज की यह पंक्ति सिर्फ पंक्ति न होकर जीवन का एक बहुत बड़ा दर्शन है, जो जीवन के किसी सपने के पूरा न होने की स्थिति में रुकने या निराश होने की जगह अपनी क्षमताओं को जानकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. पूर्व क्रिकेटर आकाश चोपड़ा की जिंदगी कहीं न कहीं इस पंक्ति को चरितार्थ करती है.

आकाश चोपड़ा का जन्म 19 सितंबर 1977 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था. जब थोड़े बड़े हुए तो क्रिकेट में दिलचस्पी बढ़ी और फिर इस खेल में देश का प्रतिनिधित्व करने का सपना लिए घरेलू क्रिकेट की शुरुआत दिल्ली से की. 1997 से दिल्ली के लिए उन्होंने खेलना शुरू किया. यह सिलसिला 2010 तक चला. 1997 से 2003 तक उनका दिल्ली के लिए शानदार प्रदर्शन रहा और इसी आधार पर 2003 में उन्हें न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में खेलने का मौका मिला.

अक्तूबर 2003 से अक्तूबर 2004 के बीच चोपड़ा को India की तरफ से 10 टेस्ट खेलने का मौका मिला. अक्तूबर 2004 में 25 साल की उम्र में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आकाश ने अपना आखिरी टेस्ट खेला. 10 टेस्ट मैचों में 2 अर्धशतक लगाते हुए 437 रन उनके बल्ले से निकले.

भारतीय टीम से ड्रॉप होने के बाद भी घरेलू क्रिकेट में वह सक्रिय रहे और खूब रन बनाए. घरेलू क्रिकेट के अपने जमाने के सफल और बड़े बल्लेबाजों में से एक रहे. 2010 तक दिल्ली के लिए घरेलू क्रिकेट खेलने वाले चोपड़ा ने 2010 से 2013 के बीच Rajasthan और हिमाचल के लिए भी खेला. उनके बल्ले से रन निकल रहे थे, लेकिन भारतीय टीम की तरफ से बुलावा नहीं था. 2013 में उन्होंने अपना आखिरी घरेलू मैच खेला.

162 प्रथम श्रेणी मैचों में 29 शतक और 53 अर्धशतक की मदद से उन्होंने 10,839 रन बनाए. उनका सर्वाधिक स्कोर नाबाद 301 रहा. लिस्ट ए के 65 मैचों में 7 शतक और 17 अर्धशतक लगाते हुए 2,415 रन उन्होंने बनाए. घरेलू क्रिकेट में सफल आकाश को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उम्मीदों के अनुरूप सफलता नहीं मिली और इसकी कसक कहीं न कहीं उनके दिल में थी. लेकिन, इसे लेकर निराश होने की जगह अपने पसंदीदा खेल में उन्होंने दूसरा करियर तलाशा. अपने नए करियर के बारे में कहीं न कहीं वह क्रिकेट छोड़ने से पूर्व सोच चुके थे.

आकाश ने क्रिकेट से संन्यास आधिकारिक तौर पर 2015 में लिया था. लेकिन, 2013 में ही बल्ले की जगह आकाश ने माइक पकड़ ली. आकाश के बल्ले से निकले शॉट् बेशक दुनिया में मशहूर नहीं हुए, लेकिन कमेंट्री बॉक्स में उनके कहे शब्द अब सुर्खियां बनते हैं. छक्के, चौके, विकेट या फिर रन आउट पर कहे आकाश के शब्द उस क्षण में रोमांच भरते हैं. उनकी मौजूदगी कमेंट्री बॉक्स को समृद्ध बनाती है.

पिछले 12 साल में क्रिकेट की अपनी बारीक जानकारी, भाषा, संवाद कौशल के दम पर कमेंटेटर के रूप में आकाश ने अपनी बेहद अलग और लोकप्रिय पहचान बनाई है. कमेंट्री बॉक्स में उनके सामने बड़े-बड़े क्रिकेटर फिके नजर आते हैं. हिंदी कमेंट्री में आकाश मौजूदा दौर का बड़ा लोकप्रिय चेहरा हैं. कमेंट्री के अलावा क्रिकेट पर आकाश विशेष शो करते हैं, कॉलम लिखते हैं, किताब भी लिख चुके हैं.

यह सब इसलिए संभव हो सका, क्योंकि आकाश ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सफलता नहीं मिलने पर निराश होकर बैठने की जगह अपने हुनर को तराशा और अपनी ऊर्जा को दूसरे क्षेत्र में लगाते हुए बड़ी सफलता हासिल की. आकाश की सफलता हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो अपनी पसंदीदा क्षेत्र में सफलता नहीं मिलने पर निराशा से भर जाता है.

पीएके/