नवंबर 2019 में यूएन में पास हुआ था प्रस्ताव, 2020 में पहली बार मनाया गया अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस

New Delhi, 17 सितंबर . पूरी दुनिया में 18 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस मनाया जाता है, जो समान कार्यों के लिए समान वेतन के सिद्धांत पर प्रकाश डालता है. अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस का उद्देश्य वेतन अंतर को समाप्त करना है, यानी महिलाओं और पुरुषों की कमाई के बीच अंतर के बारे में जागरूकता बढ़ाना है.

साल 1996 में अंतरराष्ट्रीय वेतन दिवस की उत्पत्ति हुई थी, जब राष्ट्रीय समिति की ओर से इस दिवस को पहली बार वेतन इक्विटी के रूप में मनाया गया था. इस समिति में जाति और लिंग के आधार पर मजदूरी भेदभाव को खत्म करने के लिए समर्पित महिलाओं और पुरुषों के अधिकार के संगठन शामिल हुए थे. उनका उद्देश्य सभी मजदूरों के लिए समान वेतन प्राप्त करना था.

संयुक्त राष्ट्र की ओर से अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस की स्थापना की गई थी. इसके लिए यूएन ने नवंबर 2019 में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें 18 सितंबर के दिन अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस मनाने की घोषणा की गई थी. साल 2020 में 18 सितंबर को पहली बार अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस मनाया गया था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लैंगिक वेतन से संबंधित जागरूकता बढ़ाने और समान काम के लिए समान वेतन के लक्ष्य को प्राप्त करना है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और संयुक्त राष्ट्र महिला जैसे संगठनों की ओर से अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाता है. अक्सर पुरुषों की तुलना में महिलाएं कम कमाती हैं, जिससे उनके लिए आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने की जरूरत पड़ती है. अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस मनाने का उद्देश्य प्रणालीगत असमानताओं को दूर करना है, जो लैंगिक वेतन अंतर को बढ़ाती हैं.

संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य समान वेतन दिवस 2030 तक लैंगिक आधारित वेतन अंतर को समाप्त करना है. समकालीन समाज में अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस काफी महत्व रखता है, क्योंकि यह वेतन असमानता के निरंतर प्रसार को दर्शाता है. महिलाओं के लिए विभिन्न पहलों और अभियानों के जरिए इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने के लिए एक वैश्विक मंच के रूप में अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस कार्य करता है. यह इस पर जोर देता है कि समान वेतन की अभी लड़ाई समाप्त नहीं हुई है.

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