New Delhi, 12 सितंबर . हर साल 13 सितंबर को विश्व सेप्सिस दिवस मनाया जाता है. 2012 में पहली बार विश्व सेप्सिस दिवस मनाया गया था. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2017 में आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त यह दिवस सेप्सिस के प्रति जागरूकता फैलाने, रोकथाम के उपायों को बढ़ावा देने और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने का मंच प्रदान करता है.
सेप्सिस की चुनौती अभी भी वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनी हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, हर साल लगभग 49 मिलियन लोग सेप्सिस का शिकार होते हैं, जिनमें 11 मिलियन की मौत हो जाती है. यह संख्या कोविड-19 महामारी के दौरान और बढ़ गई थी, जब स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने स्थिति को और जटिल बना दिया.
सेप्सिस यह एक जानलेवा स्थिति है, जिसमें शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र संक्रमण के खिलाफ लड़ते हुए अंगों को ही नुकसान पहुंचाने लगता है. सामान्य संक्रमण जैसे निमोनिया, मूत्र मार्ग संक्रमण या त्वचा के घाव से शुरू होकर यह तेजी से मल्टी-ऑर्गन फेलियर का कारण बन जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि सेप्सिस के शुरुआती लक्षणों, जैसे तेज बुखार, तेज सांस चलना, भ्रम की स्थिति या कम रक्तचाप, की अनदेखी घातक साबित हो सकती है.
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, 80 प्रतिशत से अधिक मामले विकासशील देशों में होते हैं, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बड़ी समस्या है. भारत में भी स्थिति चिंताजनक है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आंकड़ों के अनुसार, प्रति वर्ष लाखों बच्चे और वयस्क सेप्सिस से प्रभावित होते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां स्वच्छता और समय पर चिकित्सा की कमी है.
इस दिवस की शुरुआत 2012 में डॉ. क्रिस्ट्रॉफ व्हीच (अमेरिका) और डॉ. करण सिंगापुरवाला (यूके) के प्रयासों से हुई. डॉ. व्हीच के बेटे की सेप्सिस से मौत के बाद उन्होंने वैश्विक जागरूकता अभियान शुरू किया. 2012 में पहली बार मनाए गए इस दिवस को ग्लोबल सेप्सिस एलायंस ने बढ़ावा दिया. संयुक्त राष्ट्र ने 2017 में इसे अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित कर दिया, जिससे सरकारें, एनजीओ और स्वास्थ्य संगठन सक्रिय हो गए. हर साल एक थीम के साथ मनाया जाने वाला यह दिवस 2025 में ‘सेप्सिस को रोकें: जल्दी पहचान, तुरंत कार्रवाई’ पर केंद्रित है. यह थीम स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, मरीजों और समुदायों को शुरुआती पहचान पर जोर देने के लिए प्रेरित करती है.
विश्व सेप्सिस दिवस का महत्व अपार है. यह न केवल जागरूकता फैलाता है, बल्कि नीतिगत बदलावों को भी प्रोत्साहित करता है. डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कहा, “सेप्सिस निवारणीय है, लेकिन हर घंटे की देरी मृत्यु दर को 7.6 प्रतिशत बढ़ा देती है.”
वैश्विक स्तर पर इस दिन वेबिनार, सेमिनार, रैली और social media अभियान चलाए जाते हैं. यूरोप में यूरोपीय सेप्सिस एलायंस ने अस्पतालों में ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किए, जबकि अफ्रीका में यूएनआईसीईएफ ने मातृ-शिशु स्वास्थ्य पर फोकस किया. भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2025 के लिए राष्ट्रीय सेप्सिस जागरूकता अभियान लॉन्च किया है. दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल और Mumbai के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल ने विशेष कैंप लगाए, जहां मरीजों को सेप्सिस स्क्रीनिंग और रोकथाम की सलाह दी गई.
रोकथाम के उपाय सरल लेकिन प्रभावी हैं, जिसमें स्वच्छता बनाए रखना, टीकाकरण करवाना, घावों का समय पर इलाज कराना और संक्रमण के संकेत मिलते ही चिकित्सक से संपर्क करना शामिल है. एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग रोकना भी जरूरी है, क्योंकि यह सुपरबग्स पैदा कर रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि सेप्सिस मातृ मृत्यु का 11 प्रतिशत और नवजात मृत्यु का 21 प्रतिशत कारण है.
भारत जैसे देशों में, जहां संक्रामक रोग अभी भी प्रमुख हैं, यह दिवस स्वास्थ्य बजट बढ़ाने और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है. विश्व सेप्सिस दिवस हमें याद दिलाता है कि एक छोटा संक्रमण बड़ी त्रासदी बन सकता है. 2012 से अब तक इसने लाखों जिंदगियां बचाने में योगदान दिया है.
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एससीएच/डीकेपी