विद्वानों और छात्रों ने ज्ञान भारतम पोर्टल को प्राचीन ज्ञान के संरक्षण के लिए बताया एक ऐतिहासिक कदम

New Delhi, 12 सितंबर . Prime Minister Narendra Modi की ओर से ज्ञान भारतम पोर्टल के शुभारंभ को भारत की विशाल पांडुलिपि विरासत के संरक्षण और संवर्धन में एक ऐतिहासिक कदम बताया गया है. इस पोर्टल का उद्देश्य लाखों पांडुलिपियों में निहित भारत के अमूल्य प्राचीन ज्ञान को डिजिटल रूप से सूचीबद्ध, संरक्षित और साझा करना है, जिनमें से कई दुनिया भर में फैली हुई हैं.

भारत और पड़ोसी देशों के विशेषज्ञों, छात्रों और विद्वानों ने इस ऐतिहासिक पहल के प्रति उत्साह और प्रशंसा व्यक्त की है. उनका मानना है कि इससे भारत की बौद्धिक विरासत को वैश्विक मंच पर स्थान मिलेगा.

प्रसिद्ध पांडुलिपि विशेषज्ञ डॉ. पुनीत गुप्ता ने इस पोर्टल को भारत की पांडुलिपि विरासत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा प्रोत्साहन बताया. उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत में एक करोड़ से ज्यादा पांडुलिपियां हैं, जिनकी ज्ञान धाराओं ने हजारों वर्षों से दुनिया भर की सभ्यताओं को प्रभावित किया है.

डॉ. गुप्ता ने कहा, “यह डिजिटल लिंक और Prime Minister द्वारा गठित आठ विशेषज्ञ समितियां यह सुनिश्चित करेंगी कि इन पांडुलिपियों को न केवल संरक्षित किया जाए, बल्कि उनकी व्याख्या की जाए और उन्हें वैश्विक धरोहर के रूप में प्रस्तुत किया जाए.”

छात्र अक्षत बुंदेला ने पोर्टल को एक बहुत बड़ी वैश्विक उपलब्धि बताया.

उन्होंने पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण में एआई के उपयोग पर प्रकाश डाला और कहा कि यह पहल 2047 तक विकसित भारत के निर्माण की दिशा में एक मजबूत आधारशिला है.

उन्होंने कहा, “यह पोर्टल युवा नेतृत्व को भी सशक्त बनाता है और विदेश में भेजी गई पांडुलिपियों को वापस लाने का सरकार का प्रयास सराहनीय है.”

भारतीय विरासत संस्थान की दिव्या ने शोधकर्ताओं के लिए डिजिटलीकरण के महत्व पर प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा, “कई पांडुलिपियां निजी हाथों में हैं और जनता की पहुंच से बाहर हैं. यह पोर्टल हमें अमूल्य ज्ञान तक पहुंच प्रदान करेगा.” उन्होंने पांडुलिपियों के बारे में Prime Minister मोदी की गहरी समझ और लोकार्पण समारोह में उनकी उपस्थिति की भी प्रशंसा की.

राजस्थान के समन्वयक डॉ. सुरेंद्र कुमार शर्मा ने इस पोर्टल के माध्यम से भारत की वैश्विक परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए Prime Minister की सराहना की.

उन्होंने कहा, “सदियों से यह ज्ञान संग्रहालयों और संग्रहों तक ही सीमित था. अब इस पोर्टल के माध्यम से यह घर-घर तक पहुंचेगा.”

डॉ. शर्मा ने गहन डेटा संग्रह की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया और सामुदायिक संस्थाओं से इस ज्ञान के प्रकाशन एवं प्रसार के लिए सरकार के साथ सहयोग करने का आग्रह किया.

नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर नीरज दहल ने संस्कृत ज्ञान के संरक्षण के प्रति भारत की पहल की सराहना की.

उन्होंने कहा, “यह पहल राज्यों में चल रहे विभिन्न प्रयासों को एकीकृत करती है, जिससे शोधकर्ताओं के लिए पांडुलिपियों तक पहुंच आसान हो जाती है.”

उन्होंने इस पोर्टल को पांडुलिपियों के एकीकृत संरक्षण और अध्ययन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया.

Himachal Pradesh के छात्र कुणाल भारद्वाज को Prime Minister मोदी के संबोधन से प्रेरणा मिली.

उन्होंने कहा, “हमने बहुत कुछ सीखा और प्रेरित महसूस किया. पांडुलिपियों को भारत वापस लाना और उनका संरक्षण करना आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहद जरूरी है. यह मिशन नए ज्ञान की खोज में मदद करेगा और दुनिया को लाभान्वित करेगा.”

राजस्थान के जितेंद्र मेघवाल ने पांडुलिपि संग्रहालयों, उनके डिजिटलीकरण और अध्ययन पद्धतियों से संबंधित पोर्टल के कार्यों की सराहना की.

उन्होंने पांडुलिपियों के प्रति Prime Minister मोदी के जुनून और विदेशों से भारतीय पांडुलिपियों को वापस लाने के उनके प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा, “मैंने पहली बार Prime Minister को इतने करीब से देखा. पांडुलिपियों में उनकी रुचि वाकई प्रभावशाली है.”

श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के मार्कण्डेय तिवारी ने सरकार की योजना को ‘व्यापक और आशाजनक’ बताया. उनका मानना है कि यह पोर्टल प्राचीन पांडुलिपियों के संरक्षण और संवर्धन के माध्यम से भारत के विश्व गुरु की स्थिति को पुनः स्थापित करेगा.

उन्होंने कहा, “प्रदर्शनी में कई अज्ञात पांडुलिपियों को प्रदर्शित किया गया, जो उनके संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालती हैं.”

पीएचडी स्कॉलर प्राची ने Prime Minister के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, “उन्होंने हमें याद दिलाया कि भारत को समझने के लिए हमें इसकी संस्कृति और पांडुलिपियों को समझना होगा, जो हमारे प्राचीन ज्ञान का स्रोत हैं. हम वैश्विक ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी स्थान पुनः प्राप्त करने की राह पर हैं.”

कोबा ज्ञान मंदिर के पंकज कुमार शर्मा ने पांडुलिपियों को एक ही मंच पर एकत्रित करने के महत्व को समझाया. उन्होंने कहा, “प्रत्येक पांडुलिपि में सैकड़ों ग्रंथ होते हैं. वर्तमान में कोई पूर्ण सूचीकरण प्रणाली नहीं है. एक बार ऐसा हो जाने पर भारतीयों और दुनिया के लिए इस ज्ञान तक पहुंचना बहुत आसान हो जाएगा.”

उन्होंने पांडुलिपि संरक्षण प्रयासों का अध्ययन करने के लिए Prime Minister मोदी की मंगोलिया यात्रा की भी सराहना की.

अगरतला के डॉ. उत्तम सिंह ने ज्ञान भारतम पोर्टल को विद्वानों और युवाओं के लिए सदियों से अप्रकाशित प्राचीन ग्रंथों तक पहुंचने और उन पर शोध करने का एक बेहतरीन अवसर बताया. उन्होंने कहा, “इससे शोधकर्ताओं को बहुत लाभ होगा और विस्तृत ज्ञान सामने आएगा.”

शोध छात्रा शिवानी ने Prime Minister मोदी को पहली बार व्यक्तिगत रूप से देखने का अपना अनुभव साझा किया. उन्होंने याद किया कि कैसे Prime Minister मोदी ने मंगोल पांडुलिपियों और रामायण जैसे भारतीय महाकाव्यों से उनके संबंध का उल्लेख किया था.

गणेश, पुणे से आशीष कांकरिया और राजस्थान विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र हेमंत जैसे अन्य लोगों ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कीं और भारत के प्राचीन ज्ञान को उजागर करने में पोर्टल की सराहना की.

एकेएस/डीकेपी