New Delhi, 10 सितंबर . भारत के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, सुधारक, राजनेता और आर्य समाजी स्वामी अग्निवेश का संघर्षपूर्ण जीवन और बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अभियान आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है.
अपना पूरा जीवन सामाजिक न्याय, जातिवाद उन्मूलन और मानवाधिकारों की रक्षा में समर्पित कर देने वाले स्वामी अग्निवेश ने 2020 में दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन उनके निधन के चार वर्ष बाद भी, उनकी विरासत ‘बंधुआ मुक्ति मोर्चा’ के माध्यम से जीवित है, जो मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ रहा है.
स्वामी अग्निवेश का जन्म 21 सितंबर, 1939 को चेन्नई के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता श्याम राव थे. बचपन में ही पिता की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें पाला. उन्होंने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से वाणिज्य स्नातक, कानून की डिग्री और बिजनेस मैनेजमेंट में एमबीए किया.
पढ़ाई पूरी करने के बाद वे वकील बने और कुछ समय तक व्यवसाय भी किया. लेकिन आध्यात्मिक झुकाव के कारण 25 मार्च 1970 को उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया और आर्य समाज से जुड़ गए. रोहतक (Haryana) में उन्होंने आर्य समाज का देशव्यापी मुख्यालय स्थापित किया और ‘आर्य समाज युवा संगठन’ की शुरुआत की. आर्य समाज के सिद्धांतों, वेदों की ओर लौटना, मूर्तिपूजा का विरोध और सामाजिक समानता को उन्होंने अपने जीवन का आधार बनाया.
राजनीतिक जीवन में स्वामी अग्निवेश ने 1968 में ‘आर्य सभा’ नामक राजनीतिक दल की स्थापना की. 1977 में वे Haryana विधानसभा के सदस्य चुने गए और 1979 से 1984 तक शिक्षा मंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में सुधार के प्रयास किए, लेकिन 1982 में मजदूरों पर लाठीचार्ज की घटना ने उन्हें झकझोर दिया. उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि यह उनके सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध था. राजनीति छोड़ने के बाद वे पूर्ण रूप से सामाजिक कार्यों में लीन हो गए.
1981 में उन्होंने ‘बंधुआ मुक्ति मोर्चा’ की स्थापना की, जो बंधुआ मजदूरी के खिलाफ एक क्रांतिकारी संगठन साबित हुआ. इस संगठन ने देशभर में हजारों बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया, विशेषकर खदानों, ईंट भट्टों और कृषि क्षेत्रों से. स्वामी जी ने खुद कई बार खतरनाक इलाकों में जाकर मजदूरों को आजाद कराया. 1990 के दशक में उन्होंने Haryana के डासना मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए आंदोलन चलाया, जिससे जातिवाद के खिलाफ एक नई बहस छिड़ गई.
स्वामी अग्निवेश का सामाजिक कार्य केवल भारत तक सीमित नहीं रहा. 2004 में उन्हें ‘राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया, जो बंधुआ मजदूरी उन्मूलन के लिए था. वे माओवादी विद्रोहियों और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते रहे. 2011 में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में उनका महत्वपूर्ण योगदान था, हालांकि बाद में मतभेदों के कारण वे अलग हो गए. टीवी शो ‘बिग बॉस’ में स्वामी अग्निवेश की उपस्थिति ने उन्हें जन-जन तक पहुंचाया, जहां उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बोला.
उनका जीवन विवादों से भी भरा रहा. 2018 में झारखंड के पाकुड़ में भाजयुमो कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला किया, जिसकी उन्होंने निंदा की. कई बार हिंदू विरोधी होने के आरोप भी लगे, लेकिन वे हमेशा सामाजिक सुधारों का पक्ष लेते रहे. स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हुए, 8 सितंबर 2020 को उन्हें लीवर सिरोसिस के कारण दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास आईएलबीएस अस्पताल में भर्ती कराया गया. 11 सितंबर 2020 को 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. उनके पार्थिव शरीर को जंतर-मंतर पर अंतिम श्रद्धांजलि के लिए रखा गया.
स्वामी अग्निवेश की विरासत आज भी प्रासंगिक है. बंधुआ मुक्ति मोर्चा उनके सिद्धांतों को आगे बढ़ा रहा है, और युवा पीढ़ी उनके साहस से प्रेरणा ले रही है. आर्य समाज के इस योद्धा ने साबित किया कि संन्यासी का जीवन केवल तपस्या नहीं, बल्कि समाज सेवा का माध्यम भी हो सकता है.
–
एससीएच/डीएससी