बांग्लादेश चुनाव से पहले जमात का प्रभाव बढ़ा, शरीयत एजेंडा तेज

ढाका, 10 सितंबर . बांग्लादेश में फरवरी 2026 में आम चुनाव होने वाले हैं. हालांकि, शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध के चलते चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं, फिर भी यह देश के लिए एक अहम राजनीतिक कवायद होगी.

चुनाव से पहले जमात-ए-इस्लामी ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और शरीयत आधारित व्यवस्था की ओर जोरदार धक्का दिया जा रहा है. जमात और अन्य कट्टरपंथी संगठन खुले तौर पर बांग्लादेश को इस्लामी राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं.

अंतरिम सरकार में फिलहाल जमात का दबदबा है और आदेश भी उसी ओर से जारी किए जा रहे हैं. हाल ही में जमात के महासचिव मियां गुलाम परवार ने सरकारी स्कूलों को नृत्य शिक्षक नियुक्त करने की योजना छोड़कर धार्मिक शिक्षा देने वाले शिक्षकों को नियुक्त करने का निर्देश दिया. उनका कहना है कि धार्मिक शिक्षा सभी समुदायों के लिए अनिवार्य है, जबकि संगीत और नृत्य निजी स्तर पर सीखे जा सकते हैं.

जमात और कट्टरपंथी संगठन यह दावा कर रहे हैं कि समाज में नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है. उनका मानना है कि धार्मिक शिक्षा ही बच्चों को आदर्श नागरिक बना सकती है. इस तरह के प्रतिबंध तालिबान शासित अफगानिस्तान में भी लागू हैं.

बांग्लादेश में महिलाओं पर नैतिक पहरेदारी बढ़ गई है. अब सवाल यह है कि अगर चुनाव में बीएनपी की सरकार बनती है और खालिदा जिया Prime Minister बनती हैं, तो इन हालात से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे.

शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद से कट्टरपंथी संगठनों का हौसला बढ़ा है. अगस्त 2024 में हुए छात्र आंदोलन के दौरान जमात से जुड़े इस्लामिक छात्र शिविर की भूमिका रही. हसीना के हटने के पहले ही हफ्ते में अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं, पर 200 से अधिक हमले हुए थे, जो आगे और बढ़ गए.

अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने फरवरी 2026 में चुनाव कराने का आश्वासन दिया है. भारत स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए है. यूनुस के कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश संबंधों में खटास आई है, लिहाजा भारत एक स्थिर और निर्वाचित सरकार को तरजीह देगा.

अवामी लीग के प्रतिबंधित होने से बीएनपी को बढ़त मिलती दिख रही है. हालांकि अगर बीएनपी को बहुमत नहीं मिला, तो उसे जमात के साथ गठबंधन करना पड़ सकता है, जैसा उसने पहले भी किया है. ऐसे में भारत के लिए पड़ोसी के साथ संबंध और जटिल हो सकते हैं.

जमात को आईएसआई का पूरा समर्थन हासिल है और 1970 के दशक से ही उसका मकसद बांग्लादेश को इस्लामी राष्ट्र बनाना और भारत को अस्थिर करना रहा है.

डीएससी/