New Delhi, 8 सितंबर . अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) ने बीपी थ्रेशोल्ड को 120/80 मिमी एचजी से कम कर दिया है. भारत के एक्सपर्ट्स की मानें तो ये कदम देश में लगातार बढ़ रहे हाइपरटेंशन या हाई बीपी कंट्रोल करने को लेकर जागरूकता बढ़ाएगा और लोग अपनी सेहत को लेकर ज्यादा गंभीर होंगे.
2017 के बाद पहली बार, एएचए ने हाल ही में हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों के लिए अपने दिशानिर्देशों को अपडेट किया है. बीपी रीडिंग में सुधार किया गया है: पहले डाग्नोसिस के लिए 130/90 एमएम एचजी सीमा तय की गई थी, एएचए अब सामान्य रक्तचाप को 120/80 एमएम एचजी से कम के रूप में परिभाषित करता है.
शहर के एक प्रमुख अस्पताल में कार्डियोथोरेसिक और कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी, हृदय और फेफड़े प्रत्यारोपण सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. मुकेश गोयल ने को बताया, “भारत में उच्च रक्तचाप की तेजी से बढ़ती दरों के कारण एएचए की ओर से अपडेटेड रक्तचाप गाइडलाइन भारतीय आबादी के लिए अत्यधिक प्रासंगिक हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “भारत के लिए, ये बदलाव महत्वपूर्ण हैं: लगभग 20 करोड़ लोगों को उच्च रक्तचाप होने का अनुमान है, निदान के लिए रक्तचाप सीमा को कम करने का मतलब है कि अब आबादी का एक बड़ा हिस्सा उच्च रक्तचाप के रूप में वर्गीकृत है, जिससे जागरूकता बढ़ रही है और पहले से ही अपनी सेहत को लेकर लोग सजग हो रहे हैं.”
गोयल ने कहा कि दिशानिर्देशों में बदलाव “‘साइलेंट किलर’ प्रभाव से निपटने में मदद कर सकते हैं क्योंकि कई भारतीयों को तब तक पता ही नहीं चलता कि उन्हें उच्च रक्तचाप है जब तक कि जटिलताएं उत्पन्न न हो जाएं”.
आईएमए कोचीन की वैज्ञानिक समिति के अध्यक्ष डॉ. राजीव जयदेवन ने को बताया कि ऐसा “मुख्यतः इसलिए है क्योंकि उच्च रक्तचाप, प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण उत्पन्न नहीं करता”. और जो लोग उपचार प्राप्त कर रहे हैं, उनमें से सभी पर्याप्त नियंत्रण प्राप्त नहीं कर पाते.
विशेषज्ञ ने कहा, ” हाल ही में हुए बड़े परीक्षणों के आधार पर कह सकते हैं कि नए दिशानिर्देश रक्तचाप पर अधिक कठोर नियंत्रण की वकालत करते हैं,ऐसे अन्य परीक्षण भी हैं जो संकेत देते हैं कि उच्च रक्तचाप के उपचार से सेहत को कुछ खास फायदा नहीं होता है, और वास्तव में निम्न रक्तचाप, बेहोशी और गुर्दे की क्षति जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं.”
इसलिए, उन्होंने उच्च रक्तचाप के उपचार को अपने स्तर पर कंट्रोल करने की अपील की.
विशेष रूप से, ये दिशानिर्देश घर पर भोजन तैयार करने के लिए पोटेशियम-आधारित नमक के विकल्पों को तलाशने की सलाह देते हैं, सिवाय उन रोगियों के जो क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित हैं या जो पोटेशियम उत्सर्जन को कम करने वाली दवाएं ले रहे हैं.
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. विवेकानंद झा ने को बताया, “यह भारतीय आहार के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां घर में पका हुआ, नमकीन भोजन आम तौर पर खाया जाता है.”
इसके अलावा, उन्होंने आगे कहा, “सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) और नर्सों की भागीदारी के साथ टीम-आधारित प्रबंधन को बढ़ावा देना, भारत की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण या प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में, उपयुक्त है.”
जयदेवन ने कहा कि चूंकि हृदय संबंधी जोखिम कारक अतिरिक्त होते हैं, इसलिए “तंबाकू से बचना, शराब का सेवन कम करना, व्यायाम के स्तर में सुधार करना, स्वस्थ शरीर का वजन बनाए रखना और संतुलित आहार का पालन करना और अत्यधिक नमक के सेवन से बचना” भी महत्वपूर्ण है.
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