राष्ट्रीय पोषण सप्ताह : डॉक्टर की सलाह, पारंपरिक आहार से दूर करें ‘हिडन हंगर’ और ‘मालन्यूट्रिशन’

New Delhi, 5 सितंबर . भारत में मनाए जा रहे ‘राष्ट्रीय पोषण सप्ताह’ के अवसर पर, पोषण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है. इस अवसर पर नोएडा के सीएचसी भंगेल में सीनियर मेडिकल ऑफिसर एवं गायनेकोलॉजिस्ट (सर्जन) डॉ. मीरा पाठक
ने भारतीय आहार और जीवनशैली के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि पारंपरिक भारतीय भोजन, जैसे रोटी, सब्जी, दाल, चावल, रायता, छाछ और मौसमी फल, न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर हैं.

उन्होंने शहरी और ग्रामीण महिलाओं के बीच आहार और जीवनशैली के अंतर को उजागर करते हुए ‘हिडन हंगर’ और ‘मालन्यूट्रिशन’ जैसी गंभीर समस्याओं पर प्रकाश डाला. डॉ. पाठक ने सचेत खान-पान, संतुलित जीवनशैली और तनावमुक्त रहने की सलाह दी, ताकि हर महिला स्वस्थ और सशक्त जीवन जी सके.

डॉ. मीरा पाठक ने को बताया कि पारंपरिक भारतीय आहार जो पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. इनमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं. हालांकि, कुछ लोग पारंपरिक भोजन में गुड़ के लड्डू जैसे खाद्य पदार्थ जोड़ देते हैं, जिसे पूरी तरह से पारंपरिक नहीं कहा जा सकता.

उन्होंने बताया कि शहरी और ग्रामीण महिलाओं के आहार और जीवनशैली में अंतर होता है. शहरी महिलाएं, चाहे वे गर्भवती हों या वयस्क, अधिक प्रसंस्कृत (प्रोसेस्ड) भोजन खाती हैं, जिसमें एडिटिव्स और प्रिजर्वेटिव्स की मात्रा अधिक होती है. ताजा भोजन आसानी से उपलब्ध नहीं होता. उनकी जीवनशैली तेज और तनावपूर्ण होती है. इस कारण शहरी क्षेत्रों में ‘हिडन हंगर’ की समस्या देखी जाती है, यानी कैलोरी तो पर्याप्त मिलती है, बल्कि अधिक भी, जिससे मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोग जैसी समस्याएं बढ़ती हैं. लेकिन, भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्वों (विटामिन, खनिज, आयरन) की कमी रहती है, जिससे शरीर कमजोर हो जाता है, थकान जल्दी होती है, एनीमिया और हड्डियों की कमजोरी जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं. धूप की कमी और कैल्शियम व विटामिन डी की अपर्याप्तता भी इसका कारण है.

उन्होंने कहा कि ग्रामीण महिलाओं को ताजे फल और सब्जियां आसानी से मिल जाते हैं और उनकी जीवनशैली में शारीरिक गतिविधियां अधिक होती हैं. वे प्रदूषण से भी कम प्रभावित होती हैं. लेकिन आर्थिक तंगी और जागरूकता की कमी के कारण वे सही पोषण नहीं ले पातीं. कई बार मिथकों के आधार पर खान-पान की गलतियां होती हैं, जैसे दूध न पीना या बासी भोजन खाना. परिवार के लिए पहले खाना परोसने के बाद बचा हुआ खाना खाने की आदत भी पोषक तत्वों की कमी का कारण बनती है. इससे ग्रामीण महिलाओं में ‘ओवरट मैन्यूट्रिशन’ की समस्या होती है, जिसमें वे दिखने में दुबली-पतली होती हैं, उनका वजन उम्र के हिसाब से कम होता है और एनीमिया, विटामिन व खनिजों की कमी जैसी समस्याएं होती हैं.

डॉ. पाठक ने सुझाव दिया कि स्वस्थ रहने के लिए भोजन, व्यायाम और आराम का संतुलन जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं सचेत खान-पान (माइंडफुल ईटिंग) करें, अपने शरीर के संकेतों पर ध्यान दें और उन्हें नजरअंदाज न करें. रोजाना 8-10 गिलास पानी, नारियल पानी, नींबू पानी या छाछ जैसे तरल पदार्थ लें. गर्मियों में पानी की मात्रा बढ़ाएं.

एक महत्वपूर्ण सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं को बाएं करवट सोना चाहिए, क्योंकि इससे बच्चे की ओर रक्त प्रवाह बढ़ता है. तनाव से बचें, गहरी सांस लेने वाले व्यायाम और ध्यान करें, और सकारात्मक माहौल में रहें. जंक फूड, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स और प्रिजर्वेटिव्स वाले खाद्य पदार्थों से पूरी तरह बचें.

पीएसके/जीकेटी