Patna, 28 अगस्त . बिहार के पूर्वी चंपारण जिले का हरसिद्धि विधानसभा क्षेत्र सियासी हलकों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. हरसिद्धि और तुरकौलिया प्रखंडों से मिलकर बनी सीट का गठन 1951 में हुआ था और अब तक यहां 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं.
वर्ष 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिश के बाद यह सीट सामान्य वर्ग से बदलकर अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित कर दी गई, जिसके बाद से यहां तीन बार चुनाव हो चुके हैं. इन चुनावों में भाजपा और राजद आमने-सामने रहे.
शुरुआती दशकों में कांग्रेस का बोलबाला रहा. पहले दस चुनावों में से आठ पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया. 1967 में वाम दल और 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस की इस बढ़त को तोड़ा. 1990 के दशक में जनता दल और 2000 में समता पार्टी ने जीत दर्ज की. 2005 के दोनों विधानसभा चुनावों (फरवरी और अक्टूबर) में लोक जनशक्ति पार्टी सफल रही.
इस क्षेत्र की राजनीति में मोहम्मद हिदायतुल्लाह खान का नाम विशेष महत्व रखता है. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चार बार (1972, 1980, 1985 और 1990) जीत दर्ज कर मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के रूप में अपनी पहचान बनाई.
हाल के वर्षों में भाजपा के कृष्णानंदन पासवान ने मजबूती दिखाई. उन्होंने 2010 और 2020 में जीत हासिल की, जबकि 2015 में राजद उम्मीदवार राजेंद्र कुमार से हार गए थे. इन नतीजों ने जदयू की ‘किंगमेकर’ वाली भूमिका भी उजागर की, क्योंकि 2010 और 2020 में वह भाजपा के साथ थी, वहीं 2015 में राजद गठबंधन के साथ. दिलचस्प यह भी है कि आरक्षित सीट बनने के बाद राजद ने हर बार नया उम्मीदवार उतारा है.
हाल ही में हुए Lok Sabha चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता राधा मोहन सिंह पूर्वी चंपारण से सातवीं बार सांसद तो बने, लेकिन हरसिद्धि विधानसभा खंड में उन्हें विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के राजेश कुशवाहा से पीछे रहना पड़ा. यह परिणाम राजद गठबंधन के लिए उत्साहजनक माना जा रहा है और 2025 में उन्हें नई ऊर्जा दे सकता है.
2020 के विधानसभा चुनाव में हरसिद्धि में 2.67 लाख मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें 43,000 से अधिक अनुसूचित जाति और करीब 50,000 मुस्लिम मतदाता शामिल थे. पूरी तरह ग्रामीण इस क्षेत्र में 2020 का मतदान प्रतिशत 63.56 प्रतिशत रहा, जो अब तक का सबसे कम आंकड़ा था. 2024 तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2.78 लाख हो गई.
भाजपा पिछले कुछ वर्षों में यहां अपनी जड़ें गहरी कर चुकी है, लेकिन Lok Sabha चुनाव के नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मुकाबला अब एकतरफा नहीं रहा. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2025 का विधानसभा चुनाव हरसिद्धि में कड़ा और दिलचस्प संघर्ष लेकर आएगा.
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डीएससी/एबीएम