New Delhi, 21 अगस्त . संसद का मौजूदा सत्र Thursday को संपन्न हो गया. राज्यसभा के इस 268वें सत्र में निर्धारित समय के मुकाबले केवल 38.88 फीसदी कामकाज हो सका. मानसून सत्र में अधिक समय नारेबाजी और हंगामे की भेंट चढ़ गया.
सत्र समाप्त होने पर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण का कहना है कि अध्यक्ष मंडल की पूरी कोशिशों के बावजूद सत्र लगातार विघ्न और स्थगन का शिकार रहा.
मानसून सत्र की शुरुआत में ही 21 जुलाई को तत्कालीन उपPresident और राज्यसभा के सभापति रहे जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था. उन्होंने इस्तीफा देने के पीछे अपने खराब स्वास्थ्य को कारण बताया था.
राज्यसभा में मानसून सत्र की कुल कार्यवाही 41 घंटे 15 मिनट चली. इस अवधि की उत्पादकता केवल 38.88 प्रतिशत रही.
उपसभापति का मानना है कि यह गंभीर आत्ममंथन का विषय है. इससे न केवल बहुमूल्य संसदीय समय नष्ट हुआ, बल्कि कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक विषयों पर चर्चा का अवसर भी चूक गया. मौजूदा सत्र में सदस्यों को 285 प्रश्न, 285 शून्यकाल नोटिस और 285 विशेष उल्लेख उठाने का अवसर मिला, परंतु केवल 14 प्रश्न, 7 शून्यकाल नोटिस और 61 विशेष उल्लेख ही लिए जा सके.
उपसभापति ने खेद व्यक्त किया कि अध्यक्ष मंडल की ओर से सार्थक एवं अवरोध-मुक्त चर्चा कराने के पूरे प्रयासों के बावजूद यह सत्र बार-बार के व्यवधानों के कारण बाधित हुआ, जिससे न केवल बहुमूल्य संसदीय समय नष्ट हुआ, बल्कि कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक विषयों पर चर्चा का अवसर भी हाथ से निकल गया. हालांकि, इस सत्र में 15 Governmentी विधेयक पारित या वापस किए गए.
जम्मू कश्मीर के पहलगाम में किए गए कायरतापूर्ण आतंकवादी हमले के जवाब में India द्वारा किए गए साहसी एवं निर्णायक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर दो दिन तक विशेष चर्चा हुई, जिसमें 64 सदस्यों ने भाग लिया और इस चर्चा का उत्तर गृह मंत्री ने दिया.
वहीं, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार पर स्वप्रेरणा से वक्तव्य दिया, जिसने India की बढ़ती आर्थिक साझेदारी पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की. सदन को उपPresident पद रिक्ति की जानकारी दी गई. 24 जुलाई 2025 को कार्यकाल पूरा करने वाले तमिलनाडु से छह सदस्यों को विदाई दी गई.
उपसभापति ने आशा जताई कि इस सत्र से मिले सबक भविष्य में और अधिक रचनात्मक व सार्थक विमर्श का मार्ग प्रशस्त करेंगे. यह सत्र विधायी दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, लेकिन उत्पादकता के मामले में निराशाजनक भी, जो भविष्य में बेहतर कार्य संस्कृति की ओर संकेत करता है.
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जीसीबी/एबीएम