New Delhi, 19 अगस्त . भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगातार ‘सिंधु जल समझौते’ पर कांग्रेस को घेर रही है. भाजपा नेताओं ने निशाना साधते हुए कहा कि देशहित के बजाय विदेशी देशों के हितों का चिंतन करे, वही कांग्रेस है. भाजपा नेताओं ने यह भी कहा कि जो परिवार की संस्था रही हो, उससे समाज के कल्याण की कल्पना नहीं हो सकती है.
भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने से बातचीत में कहा कि कांग्रेस का कार्य करने का तरीका ‘वन मैन शो, वन मैन आर्मी’ का रहा है. इनके नेता ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया’ बोलते थे. दिनेश शर्मा ने कहा, “जो परिवार की संस्था रही हो, उससे समाज के कल्याण की कल्पना नहीं हो सकती.”
उन्होंने आगे कहा, “नदी हमारी है, पानी भी हमारा है, फिर भी इसके 80 प्रतिशत हिस्से का पानी पाकिस्तान को दे दिया गया. सिर्फ यही नहीं, सिंधु जल संधि के तहत यह भी समझौता कर दिया गया कि भारत, पाकिस्तान की सहमति के बिना अपनी जमीन पर बने बांधों के पानी का प्रवाह नहीं रोक सकता या उन्हें साफ नहीं कर सकता है.”
सिंधु जल संधि पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा, “देश के बंटवारे के समय, भारत से और भारत के भीतर बहने वाली नदियों का विभाजन स्वतंत्रता के लगभग 13 साल बाद अंतिम रूप दिया गया था. 80 प्रतिशत भूमि भारत में थी, सिर्फ 20 प्रतिशत पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान को मिली, फिर भी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 80 प्रतिशत नदी जल पाकिस्तान को आवंटित कर दिया. भारत की नदियों पर भारत के ही अधिकारों को बाधित किया गया, जिसकी कीमत देश के किसानों को चुकानी पड़ी है.”
इसी तरह, सिंधु जल संधि के मुद्दे पर केंद्रीय राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने कहा, “1960 की सिंधु जल संधि का विश्लेषण करें, ऐसा लगता है कि आप सिंधु नदी का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को दे रहे हैं और बदले में आपको क्या मिलता है? कुछ भी नहीं. आपने (कांग्रेस) किसानों पर विचार किए बिना इसे दे दिया. संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद भी यदि बांधों से गाद निकालने की जरूरत होती, तो भारत को पाकिस्तान की अनुमति लेनी पड़ती थी.”
भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने कहा, “आज हमने जो जानकारी पढ़ी है, वह चौंकाने वाली है. नदियां भारत की हैं, पानी भारत का है, फिर भी 80 प्रतिशत पाकिस्तान को दिया जाना है, यह कैसा न्याय है? भारत की तुलना में पाकिस्तान के आकार और जनसंख्या को देखते हुए, आवंटन आनुपातिक होना चाहिए था. आगे पढ़ने पर, हमने पाया कि नेहरू ने कैबिनेट से परामर्श किए बिना या किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किए बिना यह निर्णय लिया. यहां तक कि उनके अपने सांसदों ने भी इस कृत्य को मूर्खतापूर्ण कहा था. कांग्रेस और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल ने देश का नुकसान किया है.”
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डीसीएच/एबीएम