Bhopal , 19 अगस्त . देश की राजनीति में मतदाता सूची में कांग्रेस सहित विपक्षी दल गड़बड़ी के आरोप लगा रहे हैं. इसी क्रम में मध्य प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का आरोप है कि राज्य की 27 विधानसभा सीटों में कांग्रेस जितने वोटों से हारी उससे कहीं ज्यादा वोटरों की संख्या में इजाफा हुआ था.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सिंघार ने Tuesday को संवाददाताओं से बात करते हुए विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम विवरण पेश किया और 27 विधानसभा क्षेत्रों की तालिका सामने रखी. उन्होंने कहा कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में 27 निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस के उम्मीदवार बहुत कम मतों के अंतर से हारे; उन ही इलाकों में मतदाता-वृद्धि हार के मार्जिन से बहुत ज्यादा पाई गई; ऐसा भाजपा को अनैतिक लाभ देने के लिए किया गया.
नेता प्रतिपक्ष का दावा है कि पांच जनवरी से दो अगस्त (सात महीने) 2023 के दौरान मतदाताओं में लगभग 4.64 लाख की वृद्धि दर्ज हुई. इसी तरह दो अगस्त से चार अक्टूबर (दो महीने) में मतदाताओं में 16.05 लाख की वृद्धि दर्ज हुई, यानी प्रतिदिन 26,000 मतदाता जोड़े जा रहे थे.
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार द्वारा बताया गया कि 9 जून 2023 को भारत निर्वाचन आयोग ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को निर्देश दिया कि एक जनवरी 2023 से 30 जून 2023 के बीच हुए जोड़-घटाव और संशोधनों को वेबसाइट पर प्रकाशित न किया जाए और न ही किसी के साथ साझा किया जाए.
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा चुनाव से पहले जो सप्लीमेंट्री मतदाता सूची जारी की जाती है, उसमें कितने नाम जोड़े गए और कितने कम किए गए, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती. वहीं राजनीतिक दल को जो सूची दी जाती है, वह पांच से सात माह पुरानी होती है. राज्य में मुख्य सूची जारी होने के बाद 16 लाख वोट बढ़े हैं; इस तरह एक सीट पर 10 हजार वोट बढ़े हैं दो माह में. यह अंतर कांग्रेस की हार के अंतर से कहीं ज्यादा है.
निर्वाचन आयोग पर आरोप लगाते हुए नेता प्रतिपक्ष सिंघार ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के दो दिसंबर 2022 के आदेश के अनुसार जिलों को 8,51,564 नकली व डुप्लीकेट प्रविष्टियां हटाने के निर्देश दिये गये थे. किसी भी जिलाधिकारी ने हटाने की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की. आरटीआई के माध्यम से भी संबंधित डेटा उपलब्ध नहीं कराया गया.
नेता प्रतिपक्ष सिंघार ने कहा कि चुनाव आयोग ऑनलाइन मतदाता सूची में फोटो शामिल न करने के लिए ‘गोपनीयता’ और ‘फाइल साइज’ का बहाना देता है. लेकिन जब सरकार अपनी योजनाओं का प्रचार करती है, तब लाभार्थियों के फोटो और वीडियो बड़े-बड़े पब्लिक डॉक्यूमेंट्स और विज्ञापनों में सार्वजनिक किए जाते हैं. सवाल यह है कि अगर वहां गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होता, तो फिर पारदर्शिता के लिए मतदाता सूची में फोटो क्यों नहीं जोड़े जाते?
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एसएनपी/एएस