Mumbai , 13 अगस्त . बॉलीवुड में कुछ अभिनेता हैं जो अपनी जिंदादिली के चलते आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. शम्मी कपूर उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने ‘याहू’ की गूंज के साथ भारतीय सिनेमा को जोश से भर दिया. उनका डांस, उनका स्टाइल और उनका बेबाकपन उस दौर के बाकी अभिनेताओं से काफी अलग था और यही वजह है कि वे भीड़ से अलग खड़े नजर आते थे.
शम्मी कपूर को 1957 में रिलीज हुई फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ से लोकप्रियता हासिल हुई, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि यह फिल्म पहले देव आनंद की झोली में थी, लेकिन उस वक्त देव आनंद ने नवोदित अभिनेत्री अमीता के साथ काम करने से मना कर दिया, और जब निर्देशक नासिर हुसैन को किसी विकल्प की तलाश हुई, तो उनके सामने शम्मी कपूर आ खड़े हुए. हालांकि उस वक्त नासिर हुसैन को उन पर कुछ खास भरोसा नहीं था, पर एक शाम डिनर टेबल पर जब बातचीत हुई तो सब कुछ बदल गया, और यही डिनर करियर का अहम मोड़ बनकर आया.
शम्मी कपूर का जन्म 21 अक्टूबर 1931 को Mumbai में हुआ था. उनका असली नाम शमशेर राज कपूर था. पिता पृथ्वीराज कपूर पहले से थिएटर और फिल्मों की दुनिया में नाम बना चुके थे, और भाई राज कपूर उस दौर में इंडस्ट्री का उभरता चेहरा थे. शम्मी कपूर की शुरुआती पढ़ाई कोलकाता में हुई, जहां पृथ्वीराज कपूर थिएटर किया करते थे. जब परिवार Mumbai लौटा, तो शम्मी भी पृथ्वी थिएटर से जुड़ गए. यहीं से उन्होंने अभिनय की शुरुआत की. यहां वह जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर काम करते थे और उन्हें मासिक तनख्वाह महज 50 रुपए मिलती थी.
बचपन में ही उन्होंने क्लासिकल म्यूजिक सीखा, लेकिन उनकी रुचि वेस्टर्न म्यूजिक की तरफ थी, जिसका असर बाद में उनके डांसिंग स्टाइल में भी खूब देखने को मिला.
उनका फिल्मी करियर 1953 में ‘जीवन ज्योति’ से शुरू हुआ, लेकिन लगातार 18 फिल्मों की असफलता ने उन्हें निराश कर दिया था. लेकिन फिर आई 1957 में ‘तुमसा नहीं देखा’ फिल्म.
शम्मी कपूर की बायोग्राफी ‘शम्मी कपूर: द गेम चेंजर’ लिखने वाले पत्रकार रऊफ अहमद के मुताबिक, इस फिल्म के लिए पहले देव आनंद को साइन किया गया था, लेकिन उन्होंने अमीता के साथ काम करने से इनकार कर दिया. निर्देशक नासिर हुसैन शम्मी कपूर को लीड रोल में लेना नहीं चाहते थे. लेकिन शम्मी उन्हें डिनर पर लेकर गए, और वहीं पर हुई बातचीत ने निर्देशक की सोच बदल दी.
फिल्म बनी, रिलीज हुई, और शम्मी कपूर की किस्मत पलट गई.
1959 की ‘दिल देके देखो’ और फिर 1961 की ‘जंगली’ के साथ शम्मी कपूर का स्टारडम ऊंचाइयों पर पहुंच गया. ‘जंगली’ फिल्म का गाना ‘याहू!’ आज भी भारतीय सिनेमा का सबसे यादगार गाना है, और ‘याहू’ लोग जोश के साथ बोलते हैं. इसके बाद ‘प्रोफेसर’ (1962), ‘कश्मीर की कली’ (1964), ‘जानवर’ (1965), ‘तीसरी मंजिल’ (1966), और ‘ब्रह्मचारी’ (1968) जैसी फिल्मों ने शम्मी कपूर को 60 के दशक का स्टाइलिश और एनर्जेटिक हीरो बना दिया.
‘ब्रह्मचारी’ (1968) में शानदार अभिनय के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार मिला. मगर जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, चोटों और स्वास्थ्य समस्याओं ने उन्हें धीमा कर दिया. फिल्म ‘राजकुमार’ की शूटिंग में हाथी की टक्कर से पैर टूट गया, जिसके चलते उन्हें लंबे समय तक आराम करना पड़ा.
1970 के दशक में शम्मी ने सहायक भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं. ‘विधाता’ (1982) में उनके रोल को खूब सराहा गया और इसके लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला.
पर्सनल लाइफ की बात करें तो 1955 में शम्मी कपूर ने अभिनेत्री गीता बाली से बेहद फिल्मी अंदाज में शादी की. रऊफ अहमद के मुताबिक, शम्मी और गीता बाली की उम्र में अंतर था. गीता उनसे बड़ी थीं, और उन्हें डर था कि माता-पिता इस शादी के लिए राजी नहीं होंगे. इसलिए उन्होंने जॉनी वॉकर की मदद ली. बता दें कि जॉनी ने भी खुद नूरजहां से गुपचुप शादी की थी. शम्मी गीता से शादी के लिए इतने उत्साहित थे कि वे मंदिर में जल्दबाजी के चक्कर में सिंदूर साथ ले जाना भूल गए थे, ऐसे में उन्होंने गीता की मांग लिपस्टिक से भरी थी.
शम्मी कपूर की आखिरी फिल्म ‘रॉकस्टार’ थी, जो 2011 में रिलीज हुई थी. इसमें रणबीर कपूर नजर आए थे. इस फिल्म में उन्होंने उस्ताद जमील खान का किरदार निभाया. 11 नवंबर को फिल्म रिलीज हुई, लेकिन उससे तीन महीने पहले, 14 अगस्त 2011 को किडनी फेल होने से शम्मी कपूर का निधन हो गया.
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पीके/एएस