नई दिल्ली, 27 जनवरी . विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में 53% वैश्विक कुष्ठ रोग के मामले हैं. इसलिए इस बीमारी से प्रभावित लोगों की मदद के लिए कानूनी सुधार जरूरी हैं.
कुष्ठ/हैंसेन रोग एक संक्रामक बीमारी है, जो मायकोबैक्टीरियम लैप्रे नामक बैक्टीरिया से होती है. यह त्वचा पर गहरे जख्म, हाथ-पैर और त्वचा की नसों को नुकसान पहुंचाता है.
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में दुनियाभर के 53% कुष्ठ रोग के मामले हैं. राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस शिवसुब्रमण्यम ने कहा कि समाज में भेदभाव खत्म करने और प्रभावित लोगों को सहारा देने के लिए सामुदायिक पुनर्वास को बढ़ावा देना जरूरी है.
कुष्ठ रोग ज्यादा संक्रामक नहीं है. लेकिन, अगर किसी इलाज न करवाने वाले मरीज के नाक या मुंह से निकलने वाली बूंदों के संपर्क में बार-बार आएं, तो बीमारी फैल सकती है. कुष्ठ रोग को लेकर समाज में जागरूकता की कमी है. इसके कारण बीमारी को लेकर कई मिथक जुड़े हुए हैं.
राजेश अग्रवाल, सचिव, विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग ने कहा, “कुष्ठ रोग के कारण अछूत मानना जातिगत भेदभाव से भी बदतर है. यहां तक कि परिवार वाले भी प्रभावित व्यक्ति से दूरी बना लेते हैं.”
उन्होंने कहा कि कानूनी सुधार और जागरूकता जरूरी है ताकि प्रभावित लोगों के अधिकारों की रक्षा हो सके. इलाज के बाद प्रभावित लोगों का समाज में समावेश सुनिश्चित किया जाए. साथ ही बीमारी का शुरुआती चरण में पता लगाना और इलाज करना जरूरी है.
विकलांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त एस. गोविंदराज ने कहा, “भारत में अब भी 750 कुष्ठ कॉलोनियां मुख्य समाज से अलग-थलग हैं. देश के 700 से ज्यादा जिलों में से 125 जिलों में अभी भी कुष्ठ रोग के मामलों की बड़ी संख्या है. इनमें छत्तीसगढ़ सबसे आगे है, जहां 24 जिलों में कुष्ठ रोग के मामले सामने आते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत 2030 तक स्थानीय कुष्ठ रोग मामलों को खत्म करना चाहता है. लेकिन भारत सरकार ने 2027 तक *कुष्ठ-मुक्त भारत* का लक्ष्य रखा है.
विशेषज्ञों ने कहा कि कुष्ठ रोग समय पर पहचानने पर आसानी से ठीक हो सकता है. यह कोई स्थायी विकृति या दिव्यांगता नहीं है.
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