महाकुंभ नगर, 19 जनवरी . महाकुंभ में साधु-संतों के आगमन के बाद से आध्यात्मिक कार्य का सिलसिला जारी है. पूरे 45 दिन तक चलने वाले महाकुंभ में अब महिलाओं और पुरुषों को नागा संत बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई. इसी कड़ी में आज निरंजनी अखाड़े के लगभग 500 पुरुषों को नागा संत बनाने की दीक्षा दी गई.
दरअसल, सबसे पहले पुरुष नागा संत का विजया हवन संस्कार किया गया. इसके बाद उनका मुंडन संस्कार किया और फिर गंगा नदी के तट पर उन्हें स्नान कराया गया. इतना ही नहीं, नागा संत को वैदिक मंत्रों के साथ दीक्षा दी गई.
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी दास ने से बातचीत में बताया, “आज करीब 500 संत का विजया हवन संस्कार हुआ है, उनको नागा की दीक्षा दी जानी है. आज सभी नागा संत को गंगा नदी में लेकर गए और उसके बाद उनका मुंडन कराया. इसके बाद अपना पिंडदान किया.”
उन्होंने कहा, “हमारी परंपरा है कि जब नागा संत बनते हैं तो सबसे पहले विजया हवन संस्कार कराना पड़ता है, विजया हवन से तात्पर्य यह है कि हम अपना और अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं. उसके पश्चात रात को गंगा नदी में जाएंगे और वहां कसम खाई जाती है. हम 108 कसमें खाते हैं और एक मटके में गंगाजल लेकर जितनी भी कसमें खाई जाती हैं, उसी के अनुसार गंगा नदी को जल अर्पित किया जाता है.”
रविंद्र पुरी दास ने कहा, “सभी रस्में पूरी करने के बाद वह नागा संत बन जाते हैं. इस दौरान वह सनातन की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने का संकल्प लेते हैं. साथ ही वह कभी घर नहीं जाते हैं और न ही शादी करते हैं. यही सब कसमें नागा संत बनने के बाद खाई जाती हैं. आज से सभी नागा संत हमारे अखाड़े के सदस्य हो गए हैं.”
उन्होंने बताया, “आज से सभी नागा संत सनातन धर्म के लिए काम करेंगे और अगर कोई अपने घर जाता है तो उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है.”
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एफएम/एकेजे