झारखंड स्थापना के 25 साल, जबरदस्त सियासी टकराव के बीच बाबूलाल ने पहले सीएम के तौर पर ली थी शपथ

रांची, 14 नवंबर . 15 नवंबर को Jharkhand की स्थापना के 25 साल पूरे हो रहे हैं. वर्ष 2000 में इसी तारीख को देश के नक्शे पर 28वें राज्य के तौर पर Jharkhand अस्तित्व में आया था. तय हुआ था कि 14-15 नवंबर की दरमियानी रात ठीक 12 बजकर एक मिनट पर राज्य के नए Chief Minister को शपथ दिलाई जाएगी, लेकिन इसके कुछ घंटे पहले जबरदस्त सियासी टकराव के हालात बन गए थे.

नए राज्य के पहले Chief Minister के शपथ को लेकर दो अलग-अलग Political खेमों, भाजपा और Jharkhand मुक्ति मोर्चा, की परस्पर दावेदारियों ने माहौल को बेहद तनावपूर्ण बना दिया था. आधी रात तक स्थिति लगातार बदलती रही और राज्य के नए Chief Minister के नाम पर सस्पेंस बना रहा.

Governor नियुक्त किए जा चुके रिटायर्ड आईएएस प्रभात कुमार को यह तय करना था कि Chief Minister पद पर किसकी दावेदारी वैध मानें. संख्या बल के लिहाज से भाजपा सबसे आगे थी. 32 विधायकों के साथ-साथ समता पार्टी, जदयू, यूजीडीपी और दो निर्दलीयों के समर्थन से उसका आंकड़ा 44 पहुंच चुका था. इसी आधार पर भाजपा ने 14 नवंबर की दोपहर हरमू रोड स्थित दिगंबर जैन भवन में हुई बैठक में सर्वसम्मति से बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुना और रात 12 बजकर एक मिनट पर शपथग्रहण का कार्यक्रम राजभवन में तय कर दिया गया.

राजभवन के गुलाब उद्यान में मंच सज चुका था, रोशनी लग चुकी थी और शपथ के लिए तय समय नजदीक आ रहा था. तभी अचानक देर शाम Political समीकरण बदलते दिखे. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने कांग्रेस, आरजेडी, सीपीआई, एमसीसी और कुछ निर्दलीयों के समर्थन का दावा पेश करते हुए खुद को Chief Minister पद के लिए बेहतर दावेदार बताया. तर्क यह था कि अलग राज्य आंदोलन के सबसे बड़े नेता होने के नाते पहले Chief Minister के रूप में उन्हें शपथ दिलाई जानी चाहिए. देखते-देखते शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी, दोनों अपने-अपने विधायकों के साथ राजभवन में जा डटे.

घड़ी ने जैसे ही रात के 12 बजने का ऐलान किया, राजभवन के बाहर तनाव बढ़ गया. झामुमो, कांग्रेस और राजद समर्थकों ने भाजपा नेता के संभावित शपथग्रहण के विरोध में नारेबाजी शुरू कर दी. माहौल इतना तनावपूर्ण हो गया कि सुरक्षा बढ़ानी पड़ी. इस बीच Governor प्रभात कुमार कार्यक्रम स्थल पर आकर वापस अपने कक्ष में चले गए और संवैधानिक विशेषज्ञों से फोन पर सलाह-मशविरा शुरू कर दिया. सभी पक्षों के तर्कों पर विचार करने के बाद उन्होंने भाजपा के दावे को संवैधानिक रूप से मजबूत पाया.

करीब एक घंटे बाद, रात 1 बजकर 5 मिनट पर बाबूलाल मरांडी को Jharkhand के पहले Chief Minister के रूप में शपथ दिलाई गई. इस तरह राज्य की पहली Government अस्तित्व में आई.

इसके पहले Chief Minister के चेहरे को लेकर भाजपा के भीतर भी काफी रस्साकशी चली थी. बिहार से अलग Jharkhand बनाने का ऐतिहासिक बिल संसद ने 2 अगस्त, 2000 को पारित किया था. उस समय बाबूलाल मरांडी केंद्र Government में वन एवं पर्यावरण विभाग के राज्य मंत्री थे. पार्टी के भीतर सीएम पद के पहले दावेदार खूंटी के वरिष्ठ सांसद कड़िया मुंडा थे, जो जनसंघ काल से संगठन के समर्पित नेता और तत्कालीन Prime Minister अटल बिहारी वाजपेयी की निजी पसंद माने जाते थे.

सियासी जानकार कहते हैं कि अगर परिस्थितियां सामान्य रहतीं तो Jharkhand के पहले Chief Minister वही होते.

लेकिन राज्य गठन की तारीख नजदीक आते-आते भाजपा के एक बड़े समूह ने बाबूलाल मरांडी के नाम पर जोर लगाना शुरू कर दिया. सरयू राय, रवींद्र राय, दीपक प्रकाश, प्रवीण सिंह और प्रदीप यादव जैसे कई युवा नेता खुले तौर पर मरांडी के समर्थन में दिल्ली पहुंचे. बाबूलाल को पहले पार्टी के रणनीतिकार केएन गोविंदाचार्य का समर्थन मिला, फिर उपPrime Minister की हैसियत वाले लालकृष्ण आडवाणी भी उनके पक्ष में हुए. दूसरी ओर, कड़िया मुंडा किसी भी प्रकार की लॉबिंग से दूर रहे.

अंतिम निर्णय Prime Minister अटल बिहारी वाजपेयी को लेना था. उनकी निजी पसंद भले ही कड़िया मुंडा रहे हों, लेकिन गोविंदाचार्य और आडवाणी की राय के बाद उन्होंने बाबूलाल मरांडी को Jharkhand की राजनीति का ‘भविष्य’ मानते हुए हरी झंडी दे दी. 14 नवंबर की सुबह यह फैसला सभी भाजपा विधायकों को सुना दिया गया और फिर दिगंबर जैन भवन में विधायकों की औपचारिक बैठक में बाबूलाल मरांडी को दल का नेता चुना गया. इस तरह भारी Political खींचतान, विरोध और देर रात तक चले सस्पेंस के बाद Jharkhand का पहला अध्याय बाबूलाल मरांडी के नाम दर्ज हुआ.

एसएनसी/एबीएम