पठानकोट . केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानून अब किसानों के उग्र विरोध के बाद केन्द्र सरकार के गले की फांस बन गए हैं. पंजाब (Punjab) में कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सबसे पहले आवाज बुलंद की है कि ये 3 कानून किसानों के साथ-साथ पंजाब (Punjab) सरकार के लिए भी हानिकर साबित होंगे. आप और शिअद जैसे दूसरे राजनीतिक दलों ने भी इस मुद्दे को खूब हवा दी. इसके बाद किसान एकजुट होते गए और आंदोलन बड़ा रूप लेने लगा. किसानों के आंदोलन ने अब केंद्र सरकार (Central Government)(Central Government) पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है. यही वजह है कि उसने किसानों को दिल्ली में न केवल प्रदर्शन करने की अनुमति दे दी, बल्कि विवाद के बिंदुओं पर बातचीत के लिए भी आमंत्रित किया है. केंद्र की ओर से अब गृहमंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाल लिया है.
राजनीतिक दलों की सक्रियता की वजह से किसान आंदोलन का सूत्रपात हुआ, 31 जत्थेबंदियों ने अपने-अपने स्तर पर सड़कों, टोल प्लाजा एवं रेलवे (Railway)पटरियों पर धरने प्रारम्भ कर दिए. मालवा की कई किसान जत्थेबंदियां कई दशकों से कार्यरत हैं. ये जत्थेबंदियां कैडर आधारित हैं और लेफ्ट मूवमेंट से प्रभावित हैं. लेफ्ट हमेशा ही किसानों एवं मजदूरों को एकजुट करने और उसे अपने आधार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है. इन किसान जत्थेबंदियों की अपने-अपने आधार क्षेत्र में पकड़ बन चुकी है. इसी का परिणाम है कि इतने सुनियोजित ढंग से आंदोलन चल रहा है. इसके घर-घर जाकर लोगों से राशन एकत्रित किया गया, फंड की व्यवस्था की गई, सारा काम इस ढंग से किया कि यह आंदोलन जितना मर्जी लम्बा चले किसान संगठनों को किसी चीज की कमी न आए. किसानों के इस आंदोलन का प्रभाव हरियाणा (Haryana) और यूपी के किसानों पर पडऩा शुरू हो गया है.
कांग्रेस शुरू से ही इस आंदोलन के साथ थी, अब धीरे-धीरे आम आदमी पार्टी (आप) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) भी इस आंदोलन से जुड़ गया है. जिस प्रकार से किसान दिल्ली के लिए कूच कर गए हैं और केन्द्र सरकार उन्हें बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन करने देने के लिए राजी हो गई है, वह इस बात का द्योतक है कि किसान आंदोलन ने उस पर दबाव बनाया है. इस आंदोलन को संभालने के लिए अब गृह मंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाल लिया है.